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णेगमेषीकी प्रतिमाकी आराधना करने से हरिणैगमेषीदेव अराध्य हुआ, तैसेही जिनप्रतिमाको वंदन पूजनादिकसे आराधनेसेसो भी सम्यग्दृष्टि जीवों को आराध्य होता है।
तथा जेठमल लिखता है कि "प्रतिमाको वदना करने वास्ते संघ निकालना किसी जगह भी नहीं कहा है" तिस का उत्तर तो हम प्रथम लिख चुके हैं परंतु जब तुमारे साधु साध्वी आते हैं तब तुम इकठे होके लेनेको जाते हो और जब जाते हैं तब छोड़ने को जाते हो, तथा मरते हैं तब विमान वगैरह बना के घणे आदमी इकठे होकर दुसाले डालते हो, जलाने जाते हो तथा कई जगह पूज्य की तिथि पर इकठे होकर पोसह करते हो, इस तरां आनंद कामदेवादि श्रावकोंने, सिद्धांतों में किसी जगह करा कहा होवे तो बताओ ? और हमारे श्रावकजो करते हैं,सो तो सूत्र पंचांगी तथा सुविहिताचार्य कृत ग्रंथों के अनुसार करते हैं।
॥इति ॥
(१४)नमो बंभीए लिवीए इस पाठ का अर्थ।
. चौदहमें प्रश्नोत्तर में जेठे मूढमति ने लिखा है कि "भगवती सूत्र की आदि में (नमो बंभीए लिवीए) इस पाठ करके गणधरदेव ने ब्राह्मीलिपीके जाणनहार श्रीऋषभदेव को नमस्कार करा है, परंतु अक्षरोंको नमस्कार नहीं करा है। इस बात ऊपर अनुयोगद्वार सूत्रकी साख दी है कि जैसे अनुयोगद्वारमें पाथेका जाणनहार पुरुष सोही पाथा,ऐसे कहा है; तैसे ही इस ठिकाने भी लिपी का जाणनहार पुरुष, सो लिपी कहिये,और तिसको नमस्कार करा है" उत्तर-जो लिपी के जाणनहार को नमस्कार करा होवे तब तोभंगी