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________________ (2 ) देखके प्रतिबोध हाय; सो है नहीं और अन्य सूत्र तथा ग्रंथों को तो तुम मानते नहीं हो तो यह अधिकार कहांसे लाके जेठेने लिखा है सो,दिखाओ? तथा जेठा लिखता है कि " सूत्रोंमें चंपा प्रमुख नगरियों की सर्व वस्तुयों का वर्णन करा, परंतु जिन मंदिर का वर्णन क्यों नहीं करा? यदि होता तो करते,इसवास्ते उसवक्त जिनमंदिरथेही नहीं" तिसकाउत्तर-श्रीउववाइ सूत्रमें लिखा है कि चंपानगरी में "बहुला अरिहंत चेइआई" अर्थात् चंपानगरीमें बहुत अरिहंत के मंदिर हैं। तथा श्रीसमवायांग सूत्र में आनंदादिक दशश्रावकोंके जिन मंदिर कहे हैं,और आनंदादिकों ने वांदे पूजे हैं इत्यादि अनेक सूत्रपाठ हैं; तथापि मिथ्यात्वके उदयसे जेठको दीखा नहीं है तो हम क्या करें? फेर जेठो लिखता है "आज काल प्रतिमाको वंदने वास्ते संघ निकालते हो तोसाक्षात भगवंतको वंदने वास्ते किसीश्रावकने संघ क्यों नहीं निकाला"? तिसका उत्तर-भगवंतको वंदना करने पूजा करने को इकठे होकर जाना उसका नाम संघ है,सो जब भगवंत विचरते थे तब जहां जहां समवसरे थे तहां तहां तिस तिस नगरके राजा,राजपुत्र, सेठ,सार्थवाह प्रमुख बड़े.आडंबरसे चतुरंगिणी सेना सजके प्रभुको वंदना करने वास्ते आयेथे; सो भी संघही है जिनके अनेक दृष्टांत सिद्धांतों में प्रसिद्ध हैं तथाभगवंत श्रीमहावीरस्वामी पावापरीमें पधारे तब नव मलेच्छी जातिके और नवलेच्छी जातिके एवं अठारां देशके राजे इकठे होकर प्रभु को वंदना करने वास्ते आये हैं तिनको भी संघही कहते हैं, परंतु जेठेको संघशब्द के अर्थ की भी खबर नहीं मालूम देती है, तथा प्रभु जंगम तीर्थ थे ग्रामानुग्राम विहार करते थे, एक ठिकाने स्थायी रहना नहीं था। इससे तिनको
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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