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संख्या अनुमान तीन हजार है उसमें भी संपूर्ण प्रकार ढूंढकमत काही खंडन है । ढूंढकमतखंडननाटक 'इस नामका ग्रंथ गुजराती में छपा प्रसिद्ध है जिसमेंभी ३२ सूत्रों के पाठोंसे ढूंढकपक्षका हास्य रस युक्त खंडन किया है ॥
इत्यादि अनेक ग्रंथ ढूंढ कमतके खंडन विषयिक विद्यमान् हैं तो उसी मतलब के अन्य ग्रंथ बनानेका वृथा प्रयास करना योग्य नहीं है ऐसा विचारके केवल समकितसारके कर्त्ता जेठमलकी स्वमति कल्पनाका कुयुक्तियों के उत्तर लिखने वास्तेही ग्रंथकारने इस ग्रंथ के बनाने का प्रयास किया है ॥
ढूंढियों के साथ कई बार चर्चा हुई और ढूंढियों को ही पराजय होती रही पंडितवर्य श्रीवीरविजयजी के समय में श्रीराजनगर ( अहमदाबाद) में सरकारी अदालतमें विवाद हुआ था जिसमें ढूंढिये हार गये थे इस विवादका सविस्तर वृत्तांत "ढूंढियानोरासड़ो” इस नामसे किताब छपी है उसमें है । पूर्वोक्तचचके समय समकित - सारका कर्त्ता जेठमल भी हाजर था परंतु पराजय कोटि में आकर वह भी पलायन कर गया था, इसतरह वारंवार निग्रह कोटि में आकर अपने हृदय में अपनी असत्यताको जानकर भी निज दुर्मतिकल्पना से कुयुक्तियों का संग्रह करके समकितसार जैसा ग्रंथ बनाना यह केवल अपनी मूर्खताही प्रकट करनी है ॥
आधुनिक समय में भी कितनेही ठिकाने जैनी और ढूंढियोंकी चर्चा होती है वहां भी ढूंढिये निग्रहकोटिमें आकर पराजयको ही प्राप्त होते हैं * तथापि अपने हठको नहीं छोड़ते हैं, यही इनकी
* अमृतसर, होश्यारपुर, फनवाडा, बगीयां, जेकों प्रमुख स्थानों में जोजो कार्य - बाई हुई यो प्रायः पंजाब के सर्व जैनी और ढूंढिये जानते है कई क्षत्री ब्राह्मण वगैर भी जानते हैं कि सभा मंजूर करके संभाके समय ढूंढिये हार नहीं हुए.