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________________ श्रीआवश्यकसूत्र तथा योगशास्त्र में श्रेणिकराजाके बनाये जिनमंदिरोंका अधिकार है ।। श्रीमहानिशीथ सूत्र में कहा है कि जिनमंदिर बनवाने वाला वारवें देवलोक तक जाता है यत: काउंपिजिणाययणहिं, मंडियसव्वमेयणीव । दाणाइचउक्केग, सट्ठीगच्छेज्जअच्चुयंजावनपरं ॥ भावार्थ-जिनमंदिरों करके पृथिवी पट्टको मंडित करके और दानादिक चारों (दान, शील, तप, भावना) करके श्रावक अच्युत (वार) देवलोक तक जावे इससे उपरांत न जावे ।। श्रीआवश्यकसूत्रमें वरंगुर श्रावकने श्रीपुरिमतालनगरमें श्री मल्लिनाथजीका जिनमंदिर बनवाके घने परिवार सहित जिनपूजा करी ऐसा अधिकार है,यतःतत्तोयपरिमताले,वग्गरसाणअच्चएपडिमं। मल्लिजिणाययणपडिमा,अन्नाएवं सिबहुगोठ्ठी। श्रीआवश्यकमें भरतचक्रवर्त्तिके बनवाये जिनमंदिरका अधि कार है, यतःथभसयभाउगाणं, चौबीसं चेव जिणघरेकासि। सम्वजिणाणं पडिमा।वरण पमाणे हिंनियएहिं भावार्थ-एकसौ भाईके एकसौ स्तूप और चौवीस तीर्थकरके जिनमदिर उसमें सर्व तीर्थकरकी प्रतिमा अपने अपने वर्ण तथा शरीरके प्रमाणसहितभरतचक्रवर्तिनश्रीअष्टापदपर्वत ऊपरबनाई
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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