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________________ ( ५८ ) लिखता,जैनशास्त्रमें तो लिखा है किजहांजहां तीर्थंकरोंके जन्मादि कल्पाणक हुए हैं सो सो भूमि श्रावकको प्रणाम शुद्धिका कारण होनेसे फरसनी चाहिये-यदुक्तं॥ निक्खामण नाण निव्वाण जम्मभूमीओ वंदडू जिणाणं। णय वसइ साहुजणविरहियम्मिदेसे बहगणेवि ॥ २५॥ . अर्थ-श्रावक जिनेश्वर संबंधी दीक्षा, ज्ञान, निर्वाण और जन्म कल्याणक की भूमिको वंदन करे; तथा साधुके विहार रहित देशमें अन्य बहुत गुणोके होए भी वसे नहीं,यह गाथा श्रीमहावीरस्वामी के हस्त दीक्षित शिष्य श्रीधर्मदास गणिकी कही हुई है। . . __और जेठा लिखता है कि "संघ काढ़नेमें कुछ लाभ नहीं है, और संघ काढ़ना किसी जगह कहा नहीं है"इसके उत्तरमें लिखते है, कि जैनशास्त्रोंमें तो संघ निकालना बहुत ठिकाने कहा है, पूर्वकालमें श्रीभरतचक्रवर्ति, डंडवीर्यराजा,सगरचक्रवति,श्रीशांति जिनपुत्र चक्रायुध, रामचन्द्रतथा पांडवों वगैरहने और पांचवें आरे में भी जावडशाह, कुमारपाल, वस्तुपाल,तेजपाल,बाहडमंत्रि वगैरहने बडे आडबरसे संघनिकालकेतीर्थयात्रा करी है,और सो कल्याणकारिणी शुद्धपरंपरा अब तक प्रवर्तती है,तीर्थयात्रा निमित्त संघ निकलते हैं, श्रीजैनशासनकी प्रभावना होती है, शीशा आंखों वालेको उपयोगी होता है, आंधको नहीं, पालणपुर और पाली में दही,छाछ, खा पीके तपस्वी नामधारन करन हारे ऋखोंकीयात्रा करने वास्ते हजारों आदमी चौमासेके दिनो में हरि सबजी निगोद वगैरहके अनंते जीवोंकी हानि करते गये थे, और अद्यपि पर्यंत
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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