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________________ ( ५ ). जब देवताको तुमने धर्म करने वाला समझा, तो श्रीजिन प्रतिमा पूजनेसे देवताको मोक्षफल जो श्रीरायपसेणा सूत्र में कहा है, सो क्यों नहीं मानते ? तथा ढूंढकोंकी तरां मुहपत्ती सारादिन मुंहको बांध छोड़नी किसी भी जैनशास्त्रमें लिखी नहीं है, प्रथम तो सारादिन मुहपाटी बां धनी कुलिंग है, देखने में दैत्यका रूप दीखता है, गौयां, भैसा, बालक,स्त्रियां प्राय देखके डरते हैं,कुत्ते भौंकते हैं,लोक मश्करी करते हैं, ऐसा वेढंगा भेष देखके कई हिंदु, मुसलमान, फिरंगी, बड़े बड़े वद्धिमाना हेरान होते, और सोचते हैं कि यह क्या सांग है ? तात्पर्य जितनी जैनधर्मकी निधाजगतमें लोक प्रायः आजकाल करते हैं, सो ढूंढकोंने मुखपाटी बांधके ही कराई है,तथा दंढकोंने मुंहके तो पाटीबांधी,परंतु नाक,कान,गुदा,इनके ऊपर पाटी क्यों नहीं बांधी? इन द्वाराभी तो वायुकायके जीव भाफसे सरते होंगे ? तथा शास्त्र में लिखा है कि जो स्त्री हिंसा करती होवे,तिसके हाथसे साधुभिक्षा लेवे नहीं; तब तो ढूंढकोंकी जिन श्राविकायों ने मुख, नाक, कान गुदाके पाटीवांधी होवे,तिनके ही हाथसे दंढियोंको भिक्षा लेनी चाहिये, क्योंकि ना चांधनेसे. ढूंढिये हिंसा मानते हैं और मुखसे निकले थूकके स्पर्शसे दा घड़ाबाद सन्मूच्छिम जीवकी उत्पत्ति शास्त्र में कही है, तबतो महा अज्ञानी ढूंढक मुहपत्ती बांधके असंख्याते सन्मूच्छिम जीवोंकी हिंसा करते हैं; सो प्रत्यक्ष है ॥ ___ तथा श्रीआचारांगसूत्रके दूसरे श्रुतस्कंधके दूसरे अध्ययनके तीसरे उद्देश में कहा है यतः से भिक्खु वा भिक्खुणी वा ऊसास माणेवा
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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