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________________ ( ५२ ) (५) मुहपत्ती बांधने से सम्मूर्च्छिम जीवकी हिंसा होती है इस बाबत ! पांचवें प्रश्नोत्तर में जेठेने "वायुकायके जीवकी रक्षा वास्ते मुह पत्ती मुंहको बांधनी " ऐसे लिखा है, परंतु यह लिखना ठीक नहीं है क्योंकि मुंह से निकलते भाषा के पुद्गलसे तो वायुकायके जीव हणे नहीं जाते हैं, और यदि मुख से निकले पवनसे वे हणे जाते हैं, तो तुम ढूंढिये काष्टकी, पाषाणकी, या लोहेकी, चाहे कैसी मुहपत्ती बांधों, तोभी वायुकायके जीव हने विना रहेंगे नहीं, क्योंकि मुखका पवन बाहिर निकले बिना रहता नहीं है, यदि मुखका पवन बाहिर न निकले, पीछा मुखमें ही जावे तो आदमी मरजावे, इस वास्ते यह निश्चय समझना, कि मुंहपत्ती जो है सोत्रस जीवकी यत्ना वास्ते है, सो जब काम पड़े तब मुखवस्त्रिका मुख आगे देकं बोलना श्रीओघनिर्युक्ति में कहा है यतः संपाइमरयरेणुपमज्जगट्ठावयंति मुहपोत्तिं इत्यादि अर्थ- संपातिम अर्थात् मांखी मछरादि त्रस जीवोंकी रक्षावास्ते जब बोले, तब मुखवस्त्रिका सुख आगे देकर बोले इत्यादि । • तथा जेठेने पूर्वोक्त अपने लेखको सिद्ध करने वास्ते श्रीभगती सूत्रका पाठ तथा टीका लिखी है, सो निःकेवल झूठ है, क्योंकि श्रीभगवती सूत्रके पाठ तथा टीकामें वायुकायका नाम भी नहीं है, तो फेर जेठमल मृषावादीने वायुकायका नाम कहां से निकाला ? तथा यह अधिकार तो शकेंद्रका है, और तुम ढूंढिये तो देवताको अधर्मी मानतेहो, तो फेर उसकी निरवद्यभाषा धर्मरूप क्योंकर मानी ?
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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