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________________ इन चार प्यालोंका अधिकार । (१८९) वीस विहरमानका अधिकार। (१९०) दश प्रकारका कल्प। (१९१) जंबूस्वामीके निर्वाण पीछे दश बोल व्यवच्छेद हुए। (१९२) गौतमस्वामी तथा अन्य गणधरोंका परिवार । (१९३) अठावीस लब्धियोंके नाम तथा गुण। (१९४) असझाइयोंका काल प्रमाण । - (१९५)वारह चक्री, नव बलदेव, नव वासुदेव, नव प्रतिवसु. देव,किस किस प्रभुके वक्त में और किस किस प्रभु के अंतर में हुए ॥ (१९६) सर्व नारकियों के पाथडे,अंतरे,अवगाहना तथास्थिति (१९७) सीझना द्वार बड़ा। (१९८) नरककी ९९ पड़तला (प्रतर) । (१९९) जंवूस्वामीकी आयु। (२००) देवलोककी ६२ पड़तलां । (२०१) पक्खीको पैंठका व्रत। (२०२) लोच कराके सब साधुओंको वंदना करनी। (२०३) दीक्षा देतां चोटी उखाड़ना । (२०४) अधिक मास होवे तो पांच महीनेका चौमासा करना अब बत्तीस सूत्रोंमें जो जो बोल कहे हैं और ढूंढक मानतेनहींहैं,तिनमेंसे थोड़े बोल निष्पक्षपाती, न्याय वान,भगवान्की वाणी सत्य मानने वाले,और सुगति में जानेवाले भव्य जीवोंके ज्ञानके वास्ते लिखते हैं। (१) श्रीप्रश्नव्याकरण सूत्रके पांचवें संवरद्वारपमें साधुके उप
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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