SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 267
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर वंदना मंदिर जिन स्वीकार । मंदिर जिन स्वीकार आलसी जो ना जावें,तो बेलेका दंड साधु श्रावक से आवे । लखे न सतरसार जीव तव माने कैसा,कुगुरु न दसदे भेद वखाने पाठ ना ऐसा॥ . सवैया-कत्ते कुगुरु कमाई मुखपटी जो बंधाई किसे ग्रंथ न बताई ये कुगुरुकी चलाई है । देखो कुमतिकी फाई भोले जीव ले फसाई रीती धरम गवाई ऐले नैनके अधाई है। धागा कानमें तनाई रूप दैतका बनाई देख कूकर भुकाई आग्यावीर ना दुहाई है। पूजा हीरानग.सार जौरी रखदे सुधार फेके मुरख गवार सठ पूजा सो न ‘पाई है॥८॥ कुंडली छंद-देखो नैन निहारके अर्थ सुनो श्रुतिदोय बुद्धि विजय मुनीसजी विजयानद जगजोय । विजयानंदजगजोय पाठ का अर्थ बतायें,ज्ञाताजीमें कहा द्रोपदी पूजा पावें,जिनचैत्यादि पूज स्वर्गमें लीनो लेखो,ये समदिष्टन भई निहारं नयन जब देखो.॥ - सवैया देख मगर अभिमानी सार धर्मकी न जानी व्हे नावा विना प्राणा दधि कौन पार लावेगा। ऐसे प्रभुकीनिंदाई जब नासतक आई डुबे आप जो संगाई तुझे कोई न घडावेगा। जैसे जगमें सलारा जब पृथवीमें डारा तब होतभार भारा फेरे उडना न पावेगा। दाल खुशीमन भाई प्रभु पूजो चितलाई करो खिमत खिमाई ऐसा कारण बचावेगा ९॥. . .. कुंडली छंद-करो सुगुरुका संग जो जानों सूतर सार। भगत करी सुरियाभने पडिमा पूजाधार । पडिमा पूजा धार राय प्रसैनी भाषी, देवसुंरासुर इंदचंद प्रभु पूजा साखी। पावो तब संमदिष्टि भगत जिन दाढा धरो,सवी देवसे कहा सुगुरुकी संगत करो ॥
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy