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________________ (१०) श्रेणिक राजाने जिनप्रतिमाके ध्यानसे तीर्थकरगोत्र बांधा है। यह कथन श्रीयोगशास्त्र में है। (१२) श्रीगुणवर्मा महाराजाके सतारां पुत्रोंने सतरां भेदमें से एक एक प्रकारसे जिनपूजाकरी है, और उससे उसी भवमें मोक्ष गये हैं। यह अधिकार श्रीसतरां भेदी पूजाके चरित्रोंमें है, और सतरा भेदी पूजा श्रीरायपसेणी सूत्रमें कही है। इत्यादि अनेक ठिकाने जिनप्रतिमा पूजनेका महाफल कहा है, इसवास्ते जेठे की लिखी सर्व बातें स्वमतिकल्पनाकी हैं। । जेठेने द्रौपदी की करी जिनप्रतिमाकी पूजा बाबत यहां कितनीक कुयुक्तियां लिखी हैं,परंतु तिन सर्वका प्रत्युत्तर प्रथम(१२)वें प्रश्नोत्तरमें खुलासा लिख आये हैं। 1. 'जेठा लिखता है कि पानी, फल, फूल, धूप, दीप वगैरहके भगवंत भोगी नहीं हैं, जेठे के सहश श्रद्धा वाले ढूंढियों को हम पूछते हैं कि तुम भगवंतको वंदना नमस्कार करते हो तो क्या प्रभु वंदना नमस्कार के भोगी हैं ? क्या प्रभु ऐसे कहते हैं कि मुझं वंदना नमस्कार करो? जैसे भगवंत वंदनानमस्कारके भोगी नहीं हैं और आप कहते भी नहीं है कि तुम मुझे वंदना नमस्कार करों; तैसे ही पानी, फल,फूल, धूप, दीप बगैरहके प्रभु भोगीनहीं है, आप कहते नहीं है कि मेरी पूजा करो, परंतु उस कार्यमें तो करने वालेकी भक्तिहे,महालाभका कारण है,सम्यक्त्व की प्राप्ति होतीहै, और उससे बहुत जीव भवसमुद्रसे पार होगए हैं, ऐसे शास्त्रोंमें कहा है । इसलिये इसमें जिनेश्वरकी आज्ञा भी है। ॥ इति ॥ -deas
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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