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________________ (२४२) द्वेषसे ही सर्व शास्त्र उत्थापे उनमें विरहमानकी बातभी गई तो अब लिखे कहां से ? जब बोलने का कोई ठिकाना न रहा तो सच्चे नाम को खोटे ठहराने के वास्ते धुयें की मुठियां भरी हैं; परंतु इस से उसके झूठे पंथकीकुछ सिद्धि नहीं हुईहै,और होनेकीभी नहीं है। तथाढूंढिये बत्तीस सूत्रोंमें जो बात नहीं है सो तो मानतेहीनहीं हैं तो यह बातभी उनको माननी न चाहिये,मतलब यह कि वीस विरहमान भीनहीं मानने चाहिये;परंतु उलटे कितनेक ढूंढिये बीस विरहमानानकी स्तुति करते हैं, जोडकला बनाते हैं, परंत किसके आधारसे बनाते हैं इसके जबावमें उनकेपास कुछभी साधन नहीं है। अंतमें जेठमलने लिखा है कि "इस बातमें हमारा कुछभी पक्षपात नहीं है" यह लेख उसने ऐसा लिखा है कि जब कोई हथियार हाथमें नहीं रहा दोनों हाथ नीचे पड़गये तब शरण आने वास्ते जीजी करता है परंतु यह उसने मायाजालका फंद रचाहै । (३२) चैत्यशब्दका अर्थ साधु तथा ज्ञान नहीं इस बाबत। बत्तीसमें प्रश्नोत्तरकी आदिमें चैत्यशब्दका अर्थ साधु ठहराने वास्तेजेठमलने चौवीसबोल लिखे हैं सो सर्व झूठे हैं। क्योंकि चैत्य शब्दका अर्थ सूत्रोंमें किसी ठिकाने भी साधु नहीं कहा है। चौवीस ही बोलोंमें जेठेने चैत्यशब्दका अर्थ "देवयं चेइयं” इसपाठके अर्थ में साधु और अरिहंत ऐसा करा है, परंतु यह दोनों ही अर्थ खोटे हैं। किसीभी सूत्रकी टीकामें अथवा टब्बेमें ऐसा अर्थ नहीं करा है।। उसको अर्थती इष्टदेवजो अरिहत तिसकी प्रतिमाकी तेरह “पज्जु
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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