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________________ ( m) ऐसे समझना, परंतु जेठे अज्ञानी के लिखे मूजिव चौवीसका मेल नहीं है ऐसे नहीं समझना; क्योंकि चौवीस न होवे तो चौवीसथ्या न कहा जावे। ऊपर लिखी बातमें दृष्टांत तरीके जेठमल लिखता है कि "श्रीमहाविदेहमें एक तीर्थकरकी स्तुति करे चौवीसथ्था होता है" यह लिखनो जेठमलका बिलकुल ही अकल विनाका है, क्योंकि इस मूजिव किसी भी जैनसिद्धांतमें नहीं कहा है। और महाविदेह में चौवीसथ्था भी नहीं है । क्योंकि वहां तो जब साधुको दोष लगे तब पडिक्कमते हैं। इससे जेठमलका लेख स्वमतिकल्पना का है परंतु शास्त्रोक्त नहीं ऐसे सिद्ध होता है। इस बावत बारमें प्रश्नोत्तर में खुलासा लिखके द्रव्यनिक्षेपा बंदनीक सिद्ध करा है । ॥इति ॥ (२६) स्थापना निक्षेपा वंदनीक है इस बाबत। २९में प्रश्नोत्तरमें जेठमलने स्थापना निक्षेपा वंदनीक नहीं, ऐसे सिद्ध करनेवास्ते कितनीक मिथ्या कुयुक्तियां लिखी हैं । ___ . आद्यमें श्रादशवकालिकसूत्रकी गाथा लिखी है परंतु उस गाथासे तो स्थापना निक्षेपा अच्छी तरह सिद्ध होता है यतःसंघट्टइत्ता कारणं अहवा उवहिणामवि। खमेह अवराहं में वएज्जन पुणोत्तिया१८॥ अर्थ-कायाकरके संघहा होवे, तथा उपधिका संघद्या होवे तो शिष्यं कहे-मेरा अपराध क्षमो और दूसरीवार संघटादिअपराध नहीं करूंगा ऐसे कहे॥ -
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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