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________________ चुकजाता है, जेठमल को इसका सत्यार्थ भासन नहीं हुआ है, विना पाठके टीका है इस बाबत जेठमलने जो कुयुक्ति लिखीहै सो खोटी है, क्योंकि टीका में सूत्रपाठ की सूचनाका ही अधिकार है अरिहंतने प्रथम अर्थ प्ररूप्याउस ऊपर से गणधरने सूत्र रचे,तिनमें गुप्तपणे रहे आशयको जाननेवाले पूर्वाचार्य जो महाबुद्धिमान् थे उन्होंने उसमें से कितनाक आशय भव्यजीवोंके उपकारके वास्ते पंचांगी करके प्रकट कर दिखलाया है; परंतु कुंभकार जवाहर की कीमत क्या जाने,जवाहर की कीमत तो जौहरी ही जाने, मूलपाठ के अक्षरार्थ से पाठकी सूचना का अर्थ अनंत गुण है और टीका कारोंने जो अर्थ करा है सो नियुक्ति, चूर्णि, भाष्य और गुरुमहाराजा के बतलाए अर्थानुसार लिखा है और प्राचीन टीका के अनुसारही है इसवास्ते सर्व सत्य है, और चूर्णि, भाष्य तथा नियुक्ति चौदह पूर्वी और दशपूर्वीयोंकी करी हुई हैं, इसवास्ते सर्व मानने योग्य है; इसवावत प्रथम प्रश्नोत्तरमें दृष्टांत पूर्वक सविस्तर लिखा गयाहै। जेठमलानयुक्ति, भाष्य,चूर्णि,टीका,ग्रंथ तथा प्रकरणादिको सूत्र विरुद्ध ठहराता है सो उसकी मूढताकी निशानी है इस बावतं उसने ८५पचासी प्रश्न लिखे हैं तिनके उत्तर क्रमसे लिखते हैं। (१) "श्रीठाणांग सूत्रमें सनतकुमार चक्री अंतक्रिया करके मोक्ष गया ऐसे लिखाहै,और तिसकी टीका तीसरेदेवलोकगया, ऐसे लिखा है" उत्तर-श्रीठाणांग सूत्रमें सनतकुमार मोक्ष गया नहींकहाहे परंतु उसमें उसका दृष्टांत दीया है कि जीव भारी कर्मके उदयसे परिसहवेदना भोग के दीर्घायु पालके सिद्ध होवे,जैसे सनत कुमार,यहां कर्म परिसह वेदनाऔर आयुके दृष्टांतमें सनतकुमारका प्रहण कियाहै,क्योंकि दृष्टांत एक देशी भी होता है,इसवास्ते सनतं
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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