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इसमूजिव निषेध करनेका तिनका असली सबब यह है कि अन्य सूत्रों में जिन प्रतिमा संबंधी ऐसे ऐसे खुलासा पाठहैं कि जिससे ढूंढक मतका जड़मूलसे निकंदन होजाता है जिसकी सिद्धिमें दृष्टांत तरीके श्रीमहाकल्पसूत्रका पाठ लिखते हैं-यत:
से भयवं तहारूवं समणं वा माहणं वा चेद्रय घरे गच्छेज्जा ? हंता गोयमा ! दि दिणे गच्छेज्जा से भयवं जत्थ दिये गण गच्छेज्जा तओ किं पायच्छित्तं हवेज्जा ? गोयमा!पमायं पड़च्च तहारूवं समणं वा माहणं वा. जो जिणघरं न गच्छेज्जातओ क अहवा दुवालसमं पायच्छित्तं हवेज्जा से भयवं समणो वासगस्स पोसहसालाए पोसहिए पोसह बंभयारी किं जिणहरं गच्छेज्जा' हंता गोयमा ! गच्छेज्जा | से भयवं केागां गच्छेन्जा' गोयमा ! गाण दंसण चरणइयाए गच्छेज्जा । जे केइ पोसहसालाए पोसह बंभयारी जश्री जिणहरेन गच्छेज्जा तओ पायच्छित्तं हवेज्जा ? गोयमा ! जहा साहू तहा भाणियन्वं छठ्ठे अहवा दुवालसमं पायच्छितं हवेज्जा ।