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(१५) तथा श्रीमहानिशीथसूत्र आठ आचार्गाने मिलके रचा कहता है,सो भी मिथ्या है,क्योंकि आचार्योंने एकत्र होकर यहसूत्र लिखा है परंतु नया रचा नहीं है । ४५ विचले पांचसूत्रोंके नाम पूर्वोक्त पाठमें नहीं हैं परंतु सो आदि शब्दसे जाननेके हैं इसवास्ते इसमें कुछ भी बाधक नहीं है।
और कितनेक सूत्र, जिनमें से कितनेक ढूंढिये नहीं मानते हैं और कितनेक मानते हैं तिनमें भी आचार्योके नाम हैं, सो "सूत्र कर्ताके नाम हैं ऐसे जेठमल ठहराता है, परंतु सो मिथ्या है, क्योंकि वो नाम बनाने वालेका नहीं है;जेकर किसीमें नाम होगा तो वो वीरभद्रवत् श्रीमहावीरस्वामीके शिष्यका होगा जैसे लघु निशीथमें विशाखगणिका नाम है और श्रीपन्नवणासूत्रमें श्यामाचार्यका नाम है।
जेठमल लिखता है कि "नंदिसूत्र चौथे आरेका बना हुआ है" सो मिथ्या है, क्योंकि श्रीनंदिसूत्र तोश्रीदेवद्धिगणिक्षमाश्रमण का बनाया हुआ है और तिसके मूलपाठमें वज्रस्वामी, स्थूलभद्र चाणाक्यादिक पांचों आरेमें हुए पुरुषोंके नाम हैं।
श्रीआवश्यक तथा नंदिसूत्र में कहा है, कि द्वादशांगी गणधर महाराजाने रची सो रचना अति कठिन मालूम होनेसे भव्य जीवों के बोध प्राप्तिके निमित्त श्रीआर्यरक्षितसरि तथा स्कंदिलाचार्यने हाल प्रवर्तन हैं, इसमूजिब सुगम रचना युक्त गुंथन किया इसवास्ते कुल सूत्र द्वादशांगी के आधारसे आचार्योंने गुंथन किये हैं ऐसे समझना ।।
मूढमति ढूंढिये मिथ्यात्वके उदयसे वत्तीससूत्रही मानकर अन्य सूत्र गणधर कृत नहीं है ऐसे ठहराके तिनका निषेध करते हैं,परंतु