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________________ ( १८५ ) - जेठमल लिखता है कि "जिनप्रतिमा को देखके कोई प्रति बोध नहीं पाया" उत्तर-श्री ऋषभदेव की प्रतिमाको देखके आर्द्र कुमार प्रतिबोध हुआ और श्रीदशवकालिक सूत्रके कर्ता श्रीशय्यंभवसूरि शांतिनाथजीकी प्रतिमाको देखके प्रतिबोध हुए। यत:सिजभवं गणहरंजिणपडिमादंसणणपडिबुद्धं जेकर मूढ़मति ढूंढिये ऐसे कहें कि “यह पाठ तो नियुक्ति का है और नियुक्ति हम नहीं मानते हैं"तिनको कहना चाहिये कि श्री समवायांगसूत्र, श्रीविवाहप्रज्ञप्ती (भगवती) सूत्र, श्रीनंदिसूत्र तथा श्रीअनुयोगद्वार सूत्रके मूलपाठमें नियुक्ति माननी कही है और तुम नहीं मानते हो तिलका क्या कारण ? जेकर जैनमतके शास्त्रों को नहीं मानते हो तो फेर नीच लोकों के पंथको भानों! क्योंकि तुमारा कितनाक आचार व्यवहार उनके साथ मिलता आवेगा॥ ॥इति ॥ भ्यदुक्तं श्रीसूत्रकृतांगे द्वितीयश्रुतस्कंधे षष्ठाध्ययने । पीतीय दोण्ह दूओ पुच्छणमभयस्स पच्छवेसोउ । तेणावि सम्मदिहित्ति होज्जपडिमारहमिगया। दटुं संबुद्धो रक्खिओय ॥ व्याख्या-अन्यदाकपित्रा जनहस्तेन राजगृहे श्रेणिकराज्ञः प्राभृतं प्रेषितं आर्द्रककुमारेण श्रेणिकसुतायाभयकुमाराय स्नेह करणार्थ प्राभृतं तस्वैव हस्तेन प्रेषितं जनो राजगृहेगत्वा अणिक राज्ञः प्राभृतानि निवेदितवान् संमानितश्च राज्ञा आर्द्रक प्रहितानि प्राभृतानि चाभयकुमाराय दत्तवान् कथितानि स्नेहोत्पादकानि वचः नानि अभयेनाचिंति नूनमसौ भव्यःस्यादासन्नसिद्धिको यो मया
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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