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________________ करते हैं मुंनि महाराजा को वंदना करने वास्ते आते हैं, इत्यादि सम्यग्दृष्टिकी समग्र करणी करते हैं परंतु किसी जगह अन्य हरिहरादिक देवों को तथा मिथ्यात्रियों को नमस्कार करने वास्ते गये, पूजने वास्ते गये, तिनके गुरुओं को वंदना करी, तिनका महोत्सव किया इत्यादि कुछ भी नहीं कहा है, इसवास्ते तिनकी-करी सर्व करणी सम्यग्दृष्टि की है, और महापुण्य प्राप्तिका कारण है, और जीत आचार से पुण्यबंध नहीं होता है ऐसे कहां कहा है ? ॥ - जेठमल केवलकल्याणक का महोत्सव जीतं आचार में नहीं लिखता है,इससे मालूम होता है कि तिसमें तो जेठमलं पुण्य बंध समझता है, परंत श्रीजंबूद्वीपपन्नत्ती सूत्र में तो पांचों ही कल्याणकों के महोत्सव करने वास्ते धर्म और जिनभक्ति जानके आते हैंऐसे कहा है, इसवास्ते जेठेने जो अपने मन पसंद के लेख लिखे हैं सोसर्व मिथ्या है, श्रीजंबूद्वीपपन्नत्ती सूत्रके तीसरे अधिकार में कहा है कि: अप्पेगइया वंदणवत्तियंएवंप्यणवत्तियं सक्कार सम्माण दंसण कोउहल्ल अप्पे सक्कस्स वयणुयत्तमाणा अप्पे अण्ण मण्णमणु. यत्तमाणा अप्पेजीयमेतं एवमादि ॥ . अर्थ-कितनेक देवतावंदना करने वास्ते,कितनेक पूजा वास्ते, सत्कार वास्ते, सन्मान वास्ते, दर्शन वास्ते, कतुहल वास्ते,कितनेक शकेंद्र के कहने से, कोई कोई परस्पर एक दूसरे के कहने से और कितनेक हमारा यह उचित काम है ऐसा जानके आते हैं । जेठमल लिखता है कि "श्रीअष्टापद जा ऊपर ऋषभ देव
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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