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________________ जेठमल लिखता है कि "देवता जो दाढ़ा प्रमुख धर्म बुद्धिसे लेते होवें तो श्रावक रक्षाभी क्यों नहीं लेवे ?" उत्तर- . . जिसवक्त तीर्थंकरका निर्वाण होता है उसवक्त निर्वाण महोत्सव करनेवास्ते अगणिदेवता आते हैं और अग्निदाह किये पीछे वे दाढ़ा प्रमुख समग्र लेजाते हैं शेष कुछ भी नहीं रहता है तो इतने सारे देवताओं के बीच मनुष्य किस गिनती में हैं जो तिनके बीच जाके रक्षा प्रमुख कुछ भी ले सकें? ॥ जेठमल कहना है, कि "कुलधर्म जानके दाढ़ा पूजते हैं " सो भी असत्य है क्योंकि सूत्रों में किसी जगह भी कुलधर्म नहीं कहा है,जेठाइसको लौकिक जीतव्यवहार की करणी ठहराता है,परंतु यह करणी तो लोकोत्तर मार्गकी है "जिनदाढ़ा कीआशातना टालने वास्ते इंद्रादिक सुधर्मा सभामें भोग नहीं भोगते हैं तथा मैथुन संज्ञासे स्त्रीके शब्दका भी सेवन नहीं करते हैं " ऐसे पूर्वोक्त सूत्र पाठ में कहा है तथापिविना अकल के बेवकूफ आदमी की तरह जेठ मल ने कितनीक कुयुक्तियां लिखी हैं सो मिथ्या है, इस प्रसंग में जेठे ने कृष्णकी सभा की बात लिखी है कि “ कृष्णकी भी सुधर्मा सभा है तो तिस में क्या भोग नहीं भोगते होंगे?" उत्तर-सत्रों में ऐसे नहीं कहा है कि कृष्णकी सभा में विषय सेवन नहीं होता है इस प्रकार लिखने से जेठे का यह अभिप्राय मालूम होता है कि ऐसी ऐसी कुयुक्तियां लिखके दादा की महत्वता घटा दे परंतु पूर्वोक्त पाठमें सिद्धांतकारने खुलासा कहाहै कि दाढ़ाकी आशातनाटालने के निमित्त ही इंद्रादिक देवतेसुधर्मा सभा में भोग नहीं भोगते हैं,तामलि तापस ईशानेंद्र होके पहले प्रथम जिनप्रतिमा की पूजा करताहुआ सम्यक्त्व को प्राप्तहुआ है इस बाबतमें जेठा
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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