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________________ (१७ ) "चार इंद्र चार दादा लेवे, पीछे कितनेक देवते अंगोपांगके अस्थि प्रमुख लेते हैं,तिनमें कितनेक जिनभक्ति जानके लेते हैं, और कितः नेक धर्म जानके लेते हैं" इसवास्ते जेठमलका लिखना मिथ्या है, श्रीजंबूद्वीप पन्नत्ती का पाठ यह है : केई जिणभत्तिए केई जीयमयंतिकट्ट कई धम्मोत्तिकट्ट गिरहंति ॥ जेठमल लिखता है,कि“दादा लेनेका अधिकार तो चार इंद्रोंका हे और दाढ़ाकी पूजातोबहुत देवते करते हैं ऐसे कहा है, इसवास्ते शाश्वते पुद्गल दाढ़ा के आकार परिणमते हैं" तिसका उत्तर-एक पल्योपम कालमें असंख्याते तीर्थंकरों का निर्वाण होता है इसवास्ते सर्व सुधर्मा सभाओं में जिन दाढ़ा होसक्ती हैं, और महा विदेह के तीर्थंकरों की दाढ़ा सर्व इंद्र और विमान,भुवन, नगराधिपत्यादिक लेते हैं, परंतु भरतखंड की तरें चार ही इंद्र लेवें यह मर्यादा नहीं है तथा श्री जंबूद्वीपपन्नत्ति सूत्र की वृत्ति में श्री शांतिचंद्रो पाध्यायजी ने “ जिनसक्काहा" शब्द करके " जिनास्थीनि" अर्थात् जिनेश्वर के अस्थि कहे हैं तथा तिसही सूत्र में चारइंद्रों के सिवाय अन्य बहुते देवता जिनेश्वर के दांत, हाड प्रमुख अस्थि लेते हैं ऐसा अधिकार है, इसवास्ते जेठमल की करी कुयक्तियां खोटी हैं और जेठमल दादाकों शाश्वते पुद्गल ठहराता है परंतु सत्रों में तो खुलासा जिनेश्वर की दाढा कही हैं, शाश्वती दाढ़ा तो किसीजगह भी नहीं कही है इसवास्तेजेठमलका लिखनामिथ्या है। जेठमल लिखता है कि "जो धर्म जानके लेते होवें तो अन्य इंद्र लेवे और अच्युतेंद्र क्यों न लेवे ?"
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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