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________________ (१५ ) सूर्याभके नाटक को यदि भगवंत निषेध करेंतो सर्व ठिकाने जुदेजुदे नाटक होवें और तिससे हिंसा वध जावे" तिसका उत्तर-जेठमल की यह कल्पना बिलकुल झूठी है, जब सुर्याभ प्रभुके पास आया तब क्या देवलोक में शून्यकार था ? और समवसरण में बार में देवलोक तकके देवता और इंद्रथे क्या उन्होंने सुर्याभ जैसा नाटक नहीं देखा था ? जो वो देखने वास्ते बैठे रहे, इसवास्ते यहां इतनाही समझनेका है कि इंद्रादिक देवते बैठते हैं सो फकत भगवंतकी भक्ति समझ के ही बैठते हैं, तथा सुर्याभ देवलोक में नाटयारंभ बंद करके आया है ऐसे भी नहीं कहा है इसवास्ते जेठमलका पूर्वोक्त लिखना व्यर्थ है, और इस पर प्रश्न भी उत्पन्न होता है कि जब ढूंढिक रिख-साधु-व्याख्यान वांचते हैं तवं विना समझे 'हाजीहा' 'तहत वचन'करने वालेढूंढियेतिनके आगे आबैठते हैं,जबतक वोव्याख्यान 'वांचते रहेंगे तबतक तो वे सारे बैठे रहेंगे परंतु जब वो व्याख्यान बंदकरेंगे तब स्त्रियें जाके चुल्हेमें आग पावेंगी,रसोईपकाने लगेंगी, पानी भरने लगजावेंगी, और आदमी जाके अनेक प्रकार के छलकपट करेंगे,झूठबोलेंगे,हरी सबजी लेनेको चले जावेंगे, षटकाय का आरंभ करेंगे, इत्यादि अनेक प्रकारके पाप कर्म करेंगे, तो वो सर्व पाप व्याख्यान बंद करने वाले रिखों (साधुओं) के शिर ठहरें या अन्यके ? जेठमलजी के कथन मूजिब तो व्याख्यान बंद करने वाले रिखियों केही शिर ठहरता है! . (१४) जेठमल लिखता है कि "आनंद कामदेव प्रमुख श्रावकों ने भगवंतके आगे नाटक क्यों नहीं किया?" उत्तर-तिनमें सुर्याभ जैसी नाटक करने की अद्भुत शक्ति नहीं थी। . (१५) जेठमल लिखता है कि "रावणने अष्टापदपर्वत ऊपर
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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