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________________ ( १५३) करा है परंतु फूल विकुर्वे नहीं हैं, इसवास्ते वे फूल सचित ही हैं तथा जेठमल लिखता है कि "देवकृत वैक्रिय फूल होवे तो वे सचित्त नहीं" सोभी झूठ है क्योंकि देवकृत वैक्रिय वस्तु देवता के आत्म प्रदेश संयुक्त होती है इस वास्ते सचितही है, अचित नहीं, तथा चौतीस अतिशय में पुष्पवृष्टि का अतिशय है सो जेठमल "देवकृत नहीं प्रभु के पुण्य के प्रभाव से है " ऐसे कहता है सो झूठ है, क्योंकि (३४) अतिशय में ( ४ ) जन्म से (११) घातिकर्म के क्षयसे और (१९) देवकृत है तिस में पुष्पवृष्टि का अतिशय देवकृत में कहा है इसमूजिब अतिशयकी बात श्रीसमवायांग सूत्र में प्रसिद्ध है कितनेक ढूंढीये इस जगह 'जलयथलय, इनदोनों शब्दों का अर्थ 'जलथलके जैसे फूल' कहते हैं परंतु इन दोनों शब्दोंका अर्थ सर्वशास्त्रोंके तथा व्याकरण की व्युत्पत्ति के अनुसार जल और थल में पैदा हुए हुए ऐसा ही होता है जैसे ' पंकय ' पंक नाम कीचड तिसमें जो उत्पन्न हुआ होवे सो पंकय (पंकज) अर्थात् कमल और ' तनय ' तन नाम शरीर तिससे उत्पन्न हुआ होवे सो तनय अर्थात् पुत्र ऐसे अर्थ होते हैं; ऐसे (तनुज, आत्मज अंडय, पोयय, जराउय इत्यादि) बहुत शब्द भाषा में (और शास्त्रों में) आते हैं तथा ' ज ' शब्दका अर्थभी उत्पन्नहोना यही है, तो भी अज्ञान ढूंढीये अपना कुमत स्थापन करने वास्ते मन घड़त अर्थ करते हैं परंतु वे सर्व मिथ्या हैं ॥ , (६) जेठमल कहता है कि " भगवंतके समवसरण में यदि सचित फूल होवेतो सेठ, शाहुकार, राजा, सेनापति प्रमुखको पांच अभिगम कहे हैं तिनमें सचिन्त बाहिर रखना और अचित्त अंदर लेजाना कहा है सो कैसे मिलेगा ?” तिसका उत्तर- सचित्त वस्त बाहिर रखनी कहा है सोअपने उपभागकी समझनी, परंतु पूजा
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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