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________________ दया है. ऐसे सूत्रोंमें कहा है, इसंवांस्ते सो कार्य कदापि अयुक्त नहीं कहाजाता है तथा हम तुमको पूछते हैं कि तुमारे रिख-साधु,तथा साध्वी,त्रिविध त्रिविधजीव हिंसाका पञ्चक्खाण करके नदीयां उतरते है, गोचरी करके लेआते हैं, आहार, निहार, विहारादि अनेक कार्य करते हैं जिनमें प्रायः षटकाया की हिंसा होती है तो वे तुमारे साधु साध्वी षर्ट काया के रक्षक हैं कि भक्षक हैं ? सो विचारके देखो! जेठमलके लिखने मूजिव और शास्त्रोक्त रीति अनुसार विचार करने से तुमारे साधु साध्वी जिनाज्ञा के उत्थापक होनेसे पट कायाकै रक्षक तो नहीं है परंतु भक्षक ही हैं ऐसे मालूम होता है और उससे वे संसार में सलनेवाले हैं ऐसा भी निश्चय होता है। प्रश्नके अंतमें मुर्ख शिरोमणि जेठमल ने ओघनियुक्ति की टीकाका पाठ लिखा है सो बिलकुल झूठा है, क्योंकि जेठमल के लिखे पाठ में से एक भी वाक्य औधनियुक्ति की टीका में नहीं, है जेठमलको यह लिखना ऐसा है कि जैसे कोई स्वेच्छा से लिखदेवे कि "जेठमल ढूंढक किसानीच कुल में पैदा हुआ था इसंवास्ते जिन प्रतिमा का निदकथा ऐसा प्राचीन ढूंढक नियुक्ति में लिखा है" ॥इति ॥ (२०) सूर्याभने तथा विजयपोलीए ने जिनप्रतिमा पूजी है वीशमें प्रश्नोत्तर में जेठमलने सूर्याभ देवता और विजय .... * स्वरूपसे जिनमें हिंसा, और अनुबध से दया, ऐसे अनेक कार्य करने कीसाधु साध्वीयोंको शास्त्री में प्राज्ञा दी है, देखो श्री पाचारांग, ठाणांग, उत्तराध्ययन, देशवैकालिक प्रमुख जैन शास्त्र तथा पाठ प्रकारकी दयाकास्वरूप भाषा में देखना होवे तो देखो श्री जैन तत्वादर्शका सप्तम परिच्छेद। '
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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