SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (10) अर्थात् भ्रष्टाचारी साधुको वोसराया है। परंतु अन्य तीर्थी की ग्रहण करीजिनप्रतिमा नहीं वोसराई है,क्योंकि अन्य तीर्थीकी ग्रहण करी प्रतिमा वोसराई होती तो स्वमतेगृहीत जिन प्रतिमा वांदनी रही सोकल्पेके पाठमें कहता" इसका उत्तर-अरे भाई ! कल्पेके पाठ में तो अरिहंत देव और साधुको वंदना नमस्कार करना भी नहीं कहा है,केवल साधुको ही आहार देना कहा है, तो वोभी क्या तिस कत्यतस्ततप्ततरायोगोलककल्पा:खल्वासनादिक्रियायांनियुक्ताभ वन्तितत्प्रत्ययश्चकर्मबन्धःस्यात्तथालापादेस्सकाशात्परिचयेन तस्यैवतत्परिजनस्य वा मिथ्यात्वप्राप्तिरितिप्रथमालप्तेनत्वसंभ्रमलो कापवादर्भयाकीहशस्त्वमित्यादिवाच्यमितितथातेभ्योन्ययथिकेभ्यो शनादि दातुंवासकृत्अनुप्रदातुंवापुनः पुनरित्यर्थः,अयंचनिषेधोधर्म 'बुद्धेगव करुणयातुदद्यादपिकिंसर्वथा न कल्पते इत्याह नन्नथ्थ राया भिओगेणं तितृतीयायाःपञ्चम्यर्थत्वात् राजाभियोग वर्जयित्वेत्यर्थः राजाभियोगस्तु राजपरतन्त्रता गणः समुदायस्तद भियोगो वश्यता गणाभियोगः तस्मात् बलाभियोगो नाम राजगण व्यतिरिक्तस्य बल वतः पारतंत्र्यं देवताभियोगो देवपरतंत्रता गुरुनिग्गहोमातापितृ पार वश्यं गुरूणां वा चैत्यसाधुनांनिग्रहः प्रत्यनीककृतोपद्रवो गुरुनिग्रह स्तत्रोपस्थिते तद्रक्षार्थमन्ययूथिकादिभ्यो दददपिनातिकामति सम्य कमिति वित्तीकतारेणंति वृत्ति विकातस्याः कान्तारमरण्यं तदिव कान्तार क्षेत्र कालो वा वृत्तिकान्तारं निर्वाहाभाव इत्यर्थः तस्मादन्य तन्निषेधो दानप्रणामादे रितिप्रकृतमिति पडिगाहंतिपात्रं पीढंति पट्टा दिकं फलगंति अवष्टंभादिकं फलकं भेसज्जति पथ्यमित्यादि। तथा बंगालेकी रॉयल एसीयाटिक सुसाइटीके सेक्रेट्री डाक्टर
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy