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उनसठवां बोल
ज्ञानसम्पन्नता
आत्मा को परमात्ममय बनाने का श्रेष्ठ साधन ज्ञान है । अतएव ज्ञान प्राप्त करने से जीवात्या को क्या लाभ होना है, इस विषय मे श्री गौतम स्वामी भगवान् महावीर से प्रश्न करते हैं :
मूलपाठ प्रश्न-नाणसपन्नयाए ण भंते ! जीवे कि जणयइ ?
उत्तर- नाणसंपन्नयाए जीवे सहभावाहिगमं जण पइ नाणसंपन्ने ण जीव चाउरते ससारकनारे न विणस्सइ, जहा सुई ससुत्ता न विणस्सइ तहा जीवे ससुत्ते संसारे न विणस्सइ, नाणविणयतवचरित्ताजोगे सपाउणइ, ससमय-परसमयविसारए य सधायणिज्जे भवद ॥५६॥
शब्दार्थ प्रश्न- भगवन् । ज्ञानसम्पन्न होने से जीवात्मा को मया लाभ होता है ?