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________________ २७८-सम्यक्त्वपराक्रम (५), उत्तर- ज्ञानसम्पन्न होने से जीवात्मा सब पदार्थों के यथार्थ भाव को जान सकता है और चतुर्गति रूप ससारअटवी में दुखी नहीं होता । जैसे सूत्र (सूत-डोरा) सहित सुई गुम नही होती, उसो प्रकार सूत्र (प्रागमज्ञान) से युक्त ज्ञानी पुरुष ससार मे भूलता नही है और ज्ञान चारित्र, तप तथा विनय के योगो को प्राप्त करता है । साथ ही अपने सिद्धान्त पीर दूसरो के सिद्धान्त को ठीक तरह जानकर असत्य मार्ग मे नही फंसता है। व्याख्यान मन, वचन और काय के निरोध के विषय में जो प्रश्नोत्तर हुए हैं, उनके विषय में विवेचन किया जा चुका है । इन प्रश्नोत्तरो मे ज्ञान, दर्शन और चारित्र की विशुद्धि का खास तौर पर कथन किया गया है । अतएव गौतम स्वामी ने अब ज्ञान की प्राप्ति से होने वाले लाभ के विषय मे प्रश्न किया है । इस प्रश्न के उत्तर मे भगवान् फरमाते है--ज्ञानसम्पन्न जीवात्मा सभी भावो को अर्थात् तत्त्वो को जान सकता है और तत्त्वो का ज्ञान हो जाने के कारण यह चारगति रूप संसार में विनष्ट नही होता । जैसे डोरा वाली सूई कदाचित् नीचे गिर जाये तो भी डोरे के कारण जल्दी मिल जाती है, उसी प्रकार जो जीवात्मा श्रुतज्ञानरूप सूत्र से युक्त है, वह भी चतुर्गतिरूप ससार मे विनष्ट नही होता। कदाचित् उसे ससार मे भ्रमण करना भी पड़ता है तो वह जल्दी ही ससार से बाहर निकल जाता है । इसके सिवाय वह ससूत्र जीव श्रुतज्ञान के प्रभाव से ससार में रहते हुए भी ज्ञान, दर्शन तथा चारित्र को शीघ्र प्र.प्त करके मुक्त हो
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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