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________________ २७६-सम्यक्त्वपराक्रम (५) पहले से ही कर्मरहित नहीं होते वरन् जीव में से ही सिद्ध होते हैं । जो जीव कर्मरहित हो जाता है वही सिद्ध कह. लाने लगता है। अतएव जीवात्मा को कर्म रहित होकर सिद्ध बनने का प्रयत्न करना चाहिए । यह दुर्लभ मनुष्य जन्म सिद्धत्व प्राप्त करने के लिए ही प्राप्त हुआ है । मनुष्यजन्म मोक्ष का द्वार है । मोक्ष-मन्दिर मे पहुचने के बाद वहां से फिर वापिस नही आना पडता । वहा आत्मा अनन्त प्रानन्द मे रमण करता है। मोक्ष मे जाने के लिए तत्त्व का विचार करके, थर्म की सहायता लेकर जोवात्मा को मुक्त होने का प्रयत्न करना चाहिए । जीवात्मा कर्म से मुक्त होने का मार्ग जान सके, इसीलिए कायसमाधारण का प्रश्न पूछा गया है। शास्त्र मे सिद्ध, बुद्ध तथा मुक्त होने का जो मार्ग बतलाया गया है, उस मार्ग पर अगर जीवात्मा प्रस्थान करे तो वह अवश्य ही अपना कल्याण कर सकता है ।
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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