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________________ सातवां बोल-७५ है । यह मेरी कैसी विपरीत दशा है ! ऐसी दशा मे मुझ जैसा पतित और कौन होगा? अगर साधुपन तुमसे नही ग्रहण किया जाता तो कम, से कम क्रोध को तो मारो। श्रीउत्तराध्ययनसूत्र मे कहा है:-- कोहं असच्चं कुन्विज्जा, धारिज्जा पियमप्पियं । अर्थात्-क्रोध को असत्य करो अर्थात् क्रोध को पी जाओ और अप्रिय को भी प्रिय धारण करो । क्रोध किस प्रकार असत्य किया जा सकता है, इसके लिए एक दृष्टान्त दिया गया है । वह इस प्रकार है एक क्षत्रिय को किसी दूसरे क्षत्रिय ने मार डाला । मारे गये क्षत्रिय की पत्नी गर्भवती थी। गर्भस्थित बालक सस्कारी था । जनमने के बाद बडा होकर वह ऐसा वीर निकला कि राजा भी उसका सन्मान करने लगा। एक बार वह किसी युद्ध मे विजय प्राप्त करके आया । राजा और प्रजा के द्वारा अपूर्व सन्मान पाकर वह घर गया । रास्ते मे वह सोचता जाता था कि सब लोगो ने मेरा सन्मान किया है, मगर मैं अपने को सच्चा सन्माननीय तभी मानगा, जब मेरी माता भी मेरे कार्य को अच्छा समझेगी और मुझे आशीर्वाद देगी । मुझे दुनिया मे जो सन्मान प्राप्त हो रहा है, वह सब माता की ही कृपा का फल है। इस प्रकार सोचता हुआ वह अपनी माता के पास पहँचा । उस पर नजर पडते ही माता ने अपना मुह फेर लिया । यह देखकर वह सोचने लगा-- मेरी मा मेरी ओर दष्टिपात भी नही करना चाहती ! मुझे विक्कार है। तदनन्तर उसने मा से कहा-मा, इस वालक से क्या अपराध
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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