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________________ १८०-सम्यक्त्वपराक्रम (१) है कि रावण को किस प्रकार का मन्ताप था । परस्त्री का त्याग न होने से परस्त्री-विषयक ऐसा सन्ताप होता है कि जिससे कुल, परिवार, राज्य, देश वगैरह मटियामेट हो जाते है । अगर परस्त्री का त्याग हो तो ऐसा अवसर ही क्यो आवे ? इस प्रकार प्रत्याख्यान करने से इस लोक सम्बन्धी और परलोक सम्बन्धी सन्तापो से छुटकारा मिलता है। इस सन्ताप से बचने के लिए और सुखी बनने के लिए प्रत्याख्यान करना आवश्यक है । प्रत्याख्यान न करने से किस प्रकार का कप्ट होता है और परस्त्री का प्रत्याख्यान न करने से स्थिति कैसी बेढगी बन जाती है, इसके लिए नाथद्वारा के महन्त का उदाहरण सामने ही है । प्रत्याख्यान न करने से इस लोक के व्यवहार को भी हानि होती है और परलोक की भो हानि होती है । अतएव अगर सुखी बनना है और प्रत्येक प्रकार के सन्ताप से बचना है तो प्रत्याख्यान करो । प्रत्याख्यान से आत्मा पाप से बच जायेगी और सुखशान्ति का लाभ करेगा ।
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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