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________________ तेरहवां बोल-१७६ इच्छा का निरोध होने से क्या लाभ मिलता है? इसे प्रश्न के उत्तर मे भगवान् ने कहा-इच्छा का निरोध होने से जीव को किसी भी द्रव्य की तृष्णा या लालसा नही रहती । तृष्णा जीव के लिए वैतरणी नदी के समान दुखदायक है; इसलिए तृष्णा को जोतो । तृष्णा को जीतने के लिए भगवान् ने माग बतलाया हो है कि इच्छा का निरोष करो और इच्छा के निरोध के लिए प्रत्याख्यान करो। इच्छा का निरोध तृष्णा को जीतने का अमोघ उपाय है। आशय यह है कि प्रत्याख्यान से इच्छा-निरोध होता है, इच्छानिरोध मे तृष्णा मिट जाती है, तृष्णा मिटने से सताप का शमन हो जाता है और सन्ताप के शमन से जीव को सुखशान्ति प्राप्त होती है । भगवान् ने जगत् के जीवो को सुख का यह मार्ग बतलाया है। कुछ लोग पूछते है कि प्रत्याख्यान करने से आत्मा सन्ताप से किस प्रकार बच सकता है ? इस प्रश्न के उत्तर मे इतना कहना ही पर्याप्त होगा कि प्रत्याख्यान एक ऐसी दिव्य औषधि है कि उससे तत्काल आत्मा का सन्ताप शात हो जाता है । इसे समझने के लिए एक उदाहरण उपयोगी होगा - मान लीजिए, किसी मनुष्य ने परस्त्री का त्याग किया । परस्त्री का त्याग करने से वह परस्त्री सम्बन्धी सन्ताप से बचा रहेगा। इसके विरुद्ध जो परस्त्री का त्यागी नही हैं, उसे परस्त्री मिले या न मिले, फिर भी परस्त्री विषयक सन्ताप उसके हृदय को जलाता ही रहेगा । रावण को सीता न मिली पर सन्ताप तो मिला ही । काम की दस दशाओं का जो वर्णन किया गया है उससे ज्ञात हो सकता
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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