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________________ १२६-सम्यक्त्वपराक्रम (२) करके आत्मा का कल्याण किया जा सकता है । अहकार को जीतना वदना का एक प्रधान प्रयोजन है । वदना का अर्थ नम्रभाव धारण करना है । नम्रभाव धारण करने वाला ही अहकार को जीत सकता है परन्तु वन्दना सासारिक पदार्थों को स्वार्थ भावना से नही होनी चाहिए । सासारिक पदार्थों की कामना से तो सभी लोग नमनभाव धारण कर लेते हैं। क्या व्यापारी अपने ग्राहक को नमन नही करता ? बचपन में मैंने इस स्थिति का अनुभव किया है कि व्यापारी किस प्रकार ग्राहक को नमन करते हैं । मैं जब छोटा था और दुकान पर बैठता था तब मुझ यह अनुभव हुआ था कि ग्राहक की कितनी प्रगमा और कितना आदर किया जाता है । लेकिन यह सब नमनभाव उसकी गाँठ का पैसा निकलवाने के लिए ही होता है। इस प्रकार स्वार्थ सिद्धि के लिए तो वदना की हो जाती है किन्तु यहा जिस वदना की चर्चा चल रही है, वह ऐसी नही होनी चाहिए। वह गुणो की वदना होनी चाहिए । गुण देखकर उन्हे प्राप्त करने के लिए की जाने वदना ही सच्ची वदना है । इमी प्र पर की वदना से अहकार पर विजय प्राप्त की जा सकती और परमात्मा से भेट हो सकती है। आज वदना करने में भी पक्षपात किया जाता है। अर्थात् यह कहा जाता है कि वे हमारे हैं अतएव उन्हे मैं वदना करता हू और अमुक मेरे नही है, अत: मैं उन्हे वदना नहीं करता । वदना करने में भी इस प्रकार का पक्षपात चलाया जाता है। छनस्थ पक्षपात से सर्वथा मुक्त नही हो सकता, लेकिन वह पक्षपात तेरे-मेरे का नही होना चाहिए, वरन् पक्षपात गुणो के प्रति होना चाहिए और यह देखना
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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