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________________ दसवां बोल-१२७ चाहिए कि उनमें वदना करने योग्य गुण है या नही ! शास्त्रो का कथन है कि तुम उन्ही को वदना करो, जिनमें सयम आदि गुण हैं । जिनमे यह गुण नही हैं, उन पासत्था आदि को शास्त्र ने वदना न करने का विधान किया है । शास्त्र को पासत्था कुशील या स्वच्छन्दचारी लोगो के प्रति द्वेष नही है, किन्तु शास्त्र ने उन्हे वदना करने वालो को भी यह सूचना कर दी है कि पासत्था आदि को वदना करना उन्हे और अधिक पतित करने के समान है। अगर आप उन्हे वदना करेंगे तो वे विचार करेंगे- 'लोग हमें वदना तो करते ही है, फिर यदि सयम का पालन न किया तो भी क्या हर्ज है ?' इस प्रकार विचार कर वे लोग अधिक पतित हो जाते हैं। अत. ऐसे लोगो को वंदना करना उन्हें अधिक पतित करने के समान है। वदना गुणो के लिए ही की जाती है, अत जिनमे सयमादि गुण हो उन्ही को वदना करना उचित है। जिहोंने सयमादि गुणो को स्वीकार तो किया है, कितु जो उन्हे अपने जीवन मे उतारते नही है, उन पासन्था आदि को वदना करना अपने को और उनको पतित करने के समान है। सबोधसत्तरी मे कहा है - पासत्यं वदमाणस्स नेव कित्ती न निज्जरा होइ । होई कायकिलेसो, अण्णाणं बघई कम्मं ॥ अर्थात्-जो ज्ञान, दर्शन और चारित्र आदि गुणो को धारण तो करता है, परतु उनका निर्वाह नहीं करता, उसे पामत्था कहते हैं। ऐसे (पावस्थ) लोगो को और इसी कोटि के कुशोल और स्वच्छदी लोगो को वदना करना अनु
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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