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________________ दसवां बोल-१२५ वाला व्यक्ति भी चाडाल बन सकता है। इससे साफ जाहिर हो जाता है, कि उच्चता और नीचता जन्मजात ही नही किन्तु कर्मजात भी है। वदना का फल बतलाते हए भगवान ने कहा है कि वन्दना से नीचगोत्र का क्षय होता है और उच्चगोत्र का बध होता है । परन्तु इस बात का प्रयत्न करने की आवश्यकता है कि वन्दना पूर्ण हो सके । जव मैं आप लोगो को यह विषय सुनाता हू तब यह भी विचार करता हूँ कि कही मैं ऐसा न रह जाऊँ कि कुडछी दूसरो की थाली में तो परोस देती है लेकिन स्वय कुछ भी स्वाद नही लेती । मैं कोरा न रह जाऊ, अत अपनी आत्मा से यही कहता हू कि हे आत्मन् ! तू ऐसा प्रयत्न कर जिससे पूर्ण वन्दना कर सके । अगर मुझसे पूर्ण नियमो का पालन होता हो तो मुझे और क्या चाहिए ? मगर मैं अपने सम्बन्ध मे ऐसा अनुभव करता हु कि मुझसे अभी तक सम्पूर्ण आदर्श नियमों का पालन नहीं होता । अतएव मैं अपने आत्मा को यही कहता है कि हे आत्मन् । तू ऐसा प्रयत्ल कर जिससे पूर्ण वन्दना कर सके । आपको ऐसा विचार नहीं करना चाहिए कि हम उच्च कुल मे जन्म चुके है, इसलिए अब हमे कुछ भी करना शेष नही रहा, इससे विपरीत आपको यह विचारना चाहिए कि जितने अगो मे महापुरुषो की वाणी का पालन करते हैं उतने अशो मे तो उच्चगोत्र के है और जितने अशो मे उस वाणी का पालन नही करते उतने अशो मे उच्चगोत्री नही हैं । इस प्रकार विचार करने से ही अपनी अपूर्णता देखी जा सकती है और फलस्वरूप अपूर्णता दूर करने का प्रयत्न
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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