SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 101
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सातवां बोल-८३ कौन से कार्य दीर्घ और कौन से लघु हैं, यह वर्गीकरण करना कठिन है । अनुभवी पुरुप ही विशेषरूप से स्पष्टीकरण कर सकते है। किन्तु वास्तव मे गर्दा सभी पापो की करनी चाहिए, फिर चाहे वह दीर्घकालीन हो या निकटकालीन हो, मोटा पाप हो या छोटा पाप हो । तीसरे ठाणे मे गर्दा के तीन भेद बतलाते हुए कहा गया है - तिविहे गरिहा पन्नत्ते, तंजहा-मणता, वयसा, कायसा। अर्थात- गर्दा तीन प्रकार की है- मन से की जाने वाली, वचन से की जाने वाली और काय से की जानेवाली। अथवा मन द्वारा किये कार्यों की गर्दा करना, वचन द्वारा किये कार्यों की गहीं करना और काय द्वारा कृत कार्यों की गर्दा करना । यद्यपि गर्दा के यह तीन भेद बतलाये गये है तथापि यह नही भूलना चाहिए कि पूर्ण गर्दा वही है जो मन, वचन और काय-तीनो के द्वारा की जाती है । गर्दा करने का उद्देश्य है पावाणं कम्माणं अकरणयाए । अर्थात् -पुन पापकर्म न करने के उद्देश्य से गर्दा की जाती है । इसीलिए पाप का प्रकाशन किया जाता है कि पाप के कारण निन्दा हो और भविष्य में फिर कभी वह पाप न किया जाये । यही गर्दा का उद्देश्य है । इस उद्देश्य की पूति तभी हो सकती है जब मन, वचन और कायतीनो योगो से गर्दा की जाये । तात्पर्य यह है कि भविष्य में पुन पापकर्म मे प्रवृत्ति
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy