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________________ ८२-सम्यक्त्वपराक्रम (२) तो वह अपना रुदन न रोक सकी । मगर साधारण रीति से रोए तो लोगो को शका हो कि यह स्त्री इस पुरुष के लिए क्यों रोई ? इसका मृत पुरुप के साथ क्या सम्बन्ध था? इस प्रकार की निन्दा से बच जाये और रो भी ले, ऐसा उपाय खोजकर उस स्त्री ने अपने हाथ के कडे नीचे फैक दिये और 'मेरे कडे गिर पडे' कह-कहकर जोर-जोर से रोने लगी । वास्तव में उसे अपने जार के लिए रोना था, मगर वह कडो का वहाना करके रोने लगी। क्या यह कहा जा सकता है कि उसका रुदन कडो के लिए है ? कडा तो रोने का बहाना भर थे । इस प्रकार भीतर कुछ और भाव रखना तथा वचन द्वारा यह प्रकट करना मुझसे अमुक खराव काम हो गया, इसके लिए मुझे दुख है, यह द्रव्यगर्दा है । यह द्रव्यगर्दा ढोंग है और लोगो को ठगने के लिए को जाती है । पूर्वोक्त चतुभंगी में द्रव्यगीं दूसरे भग मे है। तीसरे प्रकार की गर्दा मन से भी की जाती है और वचन से भी की जाती है । चौथी गर्दा शून्यरूप है। यह गर्दा न मन से की जाती है, न वचन से ही की जाती है। इस प्रकार स्थानागसूत्र के दूसरे ठाणे में गर्दा के दो भेद किये गये हैं । एक गर्दा वह जो मन से की जाती है और दूसरी गर्दा वह जो वचन से की जाती है । अथवा पहली गहीं वह है जो दीर्घकाल के कार्यों की न की जाकर निकटकाल के कार्यो की की जाये और दूसरी गर्दा वह जो निकटकाल के कार्यों की न की जाकर दीर्घकालीन कार्यो की की जाये । या दीर्घ कार्य की गर्दा की जाये और लघु ( सामान्य ) कार्य की गर्दा न की जाये ।
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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