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सूत्रपरिचय- १३
की वाणी जागृत, प्रेरित करने वाली और बल देने वालो है, इस बात की परीक्षा करने के लिए कहा गया है
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जं सोच्चा पडिवज्जंति तवं खतिर्माहंसयं । - उत्तराध्ययन, ३,८ अर्थात् - जिस वाणी को सुनकर तप, क्षमा और अहिंसा की इच्छा जागृत हो, वही वास्तव में भगवदुद्वाणी ( सूत्र ) है और जिसके श्रवण से भोग, क्रोध तथा हिंसा की इच्छा जागृत हो वह शास्त्र नही, शस्त्र है । शास्त्र के विषय में इस बात का ध्यान रक्खोगे तो कभी और कही भी ठगे नही जा सकोगे । जिसके द्वारा अहिंसा, तप तथा क्षमा की जागृति होती हो, ऐसी वस्तु कही से भी लेने में हानि नही है; परन्तु जिसके द्वारा हिंसा, भोग तथा क्रोध की इच्छा जागृत हो, ऐसी वस्तु कही से भी मत लो । फिर वह चाहे किसी के नाम पर ही क्यो न मिलती हो ।
अब देखना चाहिए कि तप, क्षमा और अहिंसा का अर्थ क्या है ? कुछ लोग उपवास को ही तप कहते है, परन्तु उपवास तो तप का एक अंग मात्र है । बारह प्रकार के तपो मे उपवास भी एक तप है । परन्तु उपवास मे ही तप की समाप्ति नही हो जाती । अगर किसी मे उपवास करने का सामथ्य नही है तो वह तप के दूसरे अग द्वारा भी तप कर सकता है । तप से आत्मा को शान्तिलाभ होता है । जब आत्मा को शान्ति मिले तो समझना चाहिए कि यह तप का ही प्रभाव है । इसी प्रकार क्षमा और अहिंसा के विषय मे भी समझ लेना चाहिए ।