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________________ १२-सम्यक्त्वपराक्रम (१) यही सोचेगा कि जब यह मनुष्य मुझे जंगल में से बाहर निकाल कर सुखपूर्वक नगर मे पहुँचाए देता है तो मुझे इस विषय मे तर्क-वितर्क करने की आवश्यकता ही क्या है ? इस उदाहरण को ध्यान में लेकर इस सत्र के सार पर विचार कीजिये कि इस सूत्र का सार क्या है ? यह सूत्र जब ससार रूपी जगल से बाहर निकल कर मोक्ष-नगर मे सुखपूर्वक पहुँचा देता है तो फिर इसके विषय मे व्यर्थ 'तर्क-वितर्क करने से क्या लाभ है ? इस सूत्र में आजकल की अनेक पु तकों के समान भाषा का आडम्बर नही है और जो सूत्र इतना प्राचीन है, उसमे भाषा का आडम्बर हो भी कहाँ से ? भाषा का आडम्बर न होते हुए भी यह सूत्र कैसा है ? और जिन पुस्तको मे भाषा का आडम्बर है, वह कैसी है ? उसमे कितना विकार भरा हुआ है ? इस बात पर विचार करना चाहिए। अतएव इस सूत्र से सम्बन्ध रखने वाली अन्यान्य बातो मे न उलझे रहकर यही देखो कि यह सूत्र परमात्मा की शरण मे ले जाने वाला है या नही? ____ अमुक वाणी, सूत्र या ग्रन्थ भगवान की शरण मे ले जाने वाले है या नहीं, इस बात की परीक्षा करना आप सीख लेगे तो फिर कभी किसी के धोखे मे न आएँगे । हृदय मे अशुभ भावना तो जागृत ही रहती है। उसे जागृत करने की आवश्यकता नही होती। कहावत है - 'सन्त जागे धर्मध्यान के लिए, चोर जागे चोरी के लिए।' इस प्रकार अशुभ भावना तो जागृत ही रहती है, मगर मुख्य काम तो शुभ भावना का जागृत करना है और वह काम भगवान् की वाणी और महात्माओ की शरण गहने से ही हो सकता है। भगवान् की वाणी जागृत और बलवान् बनाती है । भगवान् ।
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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