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सूत्रपरिचय-१ कहेगी कि मैने रोटी का सामान तो नही बनाया है, सिर्फ, सामान का उपयोग करके रोटी तैयार करदी है। इस प्रकार उस महिला ने रोदी के सामान से रोटी बनाई है, फिर भी कोई यह कहता है-'यह रोटी उस महिला की है' तो कोई कहता है-'यह रोटी आटे को है। इन दोनो बातो मे से -कौन-सी बात सही मानी जाये ? दोनो बाते ठीक माननी होगी। । इसी प्रकार उत्तराध्ययनसूत्र स्थविरो ने रचा है या जिनवाणी मे से सगृहीत और अगो मे 'सें उद्धत है, यह दोनो ही कथन सही है । वस्त्रो और बटनो को आप अपना बतलाते हैं, परन्तु उनमे आपका क्या है ? फिर भी आप अपना तो कहते ही है । इसी प्रकार इस उत्तराध्ययनसूत्र के कर्ता के विषय मे भी अनेक दृष्टियो से विचार करने पर उक्त दोनो ही कथन सत्य प्रतीत होंगे ।
यह उत्तराध्ययनसूत्र स्थविरों ने पूर्व अग मे से उद्धृत करके और जिनवाणी के उपदेश का तथा सम्वाद आदि का सग्रह करके बनाया है । अब यह देखना चाहिये कि इस सूत्र का सार क्या है ? इस सूत्र का सार है-बध और मोक्ष का स्वरूप बतलाना । कल्पना कीजिये, एक मनुष्य भयानक जगल में फंस गया है । जगल मे पद-पद पर सापो और सिंहो का भय है। ऐसे विकट समय में दूसरा मनुष्य आकर उससे कहता है-तुम मेरे साथ चलो । मैं तुम्हे इस भयकर जगल से बाहर निकाल कर सुरक्षित नगर मे पहुँचा दगा। ऐसे प्रसग पर जगल मे फसा हुआ मनुष्य आगन्तुक मनुष्य का रूप देखेगा या उसके भाव पर विचार करेगा ? वह रूप न देखकर उसके कहने के भाव पर ही विचार करेगा ? वह