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तीसरा बोल- १७६
उसी विज्ञान ने सहारक - सामग्री भी उतनी ही उत्पन्न को है । इस दृष्टि से गम्भीर विचार करने पर पता चलेगा कि विज्ञान की बदौलत सुख की अपेक्षा दुख की ही अधिक वृद्धि हुई है । विज्ञान का जब इतना विकास नही हुआ था, तब राष्ट्र सुखी था या दुखी ? विज्ञान ने मानवसमाज का रक्षण किया या भक्षण ? शान्ति प्रदान की है या अशांति ? ऊपरी दृष्टि से देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि विज्ञान ने सुख-साधन प्रदान किये हैं । मगर विचारणीय तो यह है कि इन सुख-साधनो ने राष्ट्र को सुख पहुचाया भी है या नही ? यही नही, बल्कि सुख के बदले दुख तो नही पहुचाया ? सावधानी से विचार करने पर स्पष्ट प्रतीत होगा कि विज्ञान ने राष्ट्र को दुख, दारिद्रय और घोर अशान्ति की ही भेंट दी है ।
विज्ञान की सहारक शक्ति के कारण कोई भी राष्ट्र आज सुखी, शान्त या निर्भय नही है । सारा संसार आज भयग्रस्त और अज्ञात है । ऐसी स्थिति मे, विज्ञान का साक्षात् फल देखते हुए भी विज्ञान को सुखदायक किस प्रकार कहा जा सकता है ? पहले जब कभी युद्ध होता था तो योद्धागण ही तलवारो से आपस मे लडते थे । लडने के उद्देश्य से जो सामने आता, उसी पर तलवार का प्रहार किया जाता था । मगर आज विज्ञान के अनुग्रह से युद्ध मे भाग न लेने वाले और शांति से घर मे बैठे हुए लोग भी मो के शिकार बनाये जाते हैं। यह विज्ञान का ही आविकार है । बमगोलो की मार से अबीसीनिया और चीन देश के हजारों-लाखो नागरिको को जान-माल से हाथ