________________
१७८-सम्यक्त्वपराक्रम (१)
विपरीत विज्ञान द्वारा सभी प्रकार के सुख सुलभ हो जाते है । विज्ञान ने मानव-समाज को कितना सुखी बना दिया है ? जिस जगह पहुचने मे महीनो लगते थे, वहा अब कुछ ही घन्टो मे वायुयान द्वारा पहुच सकते हैं । अमेरिका का गायन और भाषण घर बैठे-बैठे सुनना पहले क्या शक्य था? लेकिन विज्ञान की कृपा से आज वह सभी के लिए सुलभ हो गया है । जिस मुख और सुविधा की कल्पना भी नही की जा सकती थी, वही सुख आज विज्ञान की बदौलत प्राप्त हो रहा है । ग्रामोफोन, टेलीग्राफ, बेतार का तार आदि वैज्ञानिक आविष्कार द्वारा कितनी सुविधाएँ हो गई हैं ? इस प्रकार विज्ञान ने मनुष्यसमाज के कितने दुख दूर कर दिये है ? जो विज्ञान हमे इतना सुख पहुँचा रहा है उसे ही क्यो न माना जाये ? कुछ भी सुख न देने वाले बल्कि प्राप्त सुखो के प्रति अरुचि उत्पन्न करने वाले धर्म को मानने की अपेक्षा सब प्रकार की सुख सुविधाएं देने वाले विज्ञान को ही उपास्य क्यो न माना जाये ?
इस प्रकार की विचारधारा से प्रेरित होकर बहुतसे लोग धर्म की अपेक्षा विज्ञ न को अधिक महत्व देते है । धर्म, वस्तु का स्वभाव है । अतएव जिस वस्तु में जो स्वभाव है, उचित कारणकलाप मिलने पर अवश्य ही उसका प्राकटय होता है । इस दृष्टि से विज्ञान को कौन नही मानता ? परन्तु जो विज्ञान धर्म की अपेक्षा श्रेष्ठ और सकल सुखदाता माना जाता है, वह वास्तव मे ही सुखदायक है या दुखदायक ? इस प्रश्न पर यहा विचार करना आवश्यक है। जिस विज्ञान ने जितनी सुख-सामग्री प्रस्तुत की है,