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१८०-सम्यक्त्वपराक्रम (१) धोना पडा है । विज्ञान की बदौलत वहाँ अमानुषिक और रोमाञ्चकारी अत्याचार किये जा रहे हैं और विनाश का ताण्डवनत्य हो रहा है | यह विज्ञान का आविष्कार या विनाश का आविष्कार है ? एक सज्जन ने मुझ बतलाया था कि एक ग्लास पानी में विशेष प्रकार की वैज्ञानिक क्रिया-त्रिक्रिया करने से ऐसी शक्ति उत्पन्न हो जाती है, जो सम्पूर्ण लन्दन नगरी को थोडी हो देर मे नष्टप्राय कर सकती है । जिस नगरी मे लाखो की आबादो है और जो ससार को सब से विशाल नगरी कहलाती है, उसे कुछ ही देर मे नष्ट कर डालने की यह योजना विज्ञान की हा है । यह है विज्ञान की अनुपम देन ।
आज जिन पाश्चात्य या पौर्वात्य देशो में विज्ञान का अधिक प्रचार है, वह देश क्या युद्ध के चक्कर मे नही फसे हैं ? आज सारा यूरोप -जर्मनी, इग्लेण्ड, इटली, फ्रान्स, स्पेन आदि देश तथा एशिया-रशिया, जपान आदि देश, विज्ञान के बल पर युद्ध करके राज्यलिप्सा को तृप्त करना चाहते है । इस कुत्सित लिप्सा के कारण ही मानव-सृष्टि के शीघ्र से शीघ्र सहार की शोध अाज विज्ञान कर रहा है । इस प्रकार विज्ञान ही मानव-समाज की सस्कृति का विनाश करने के लिये सब से अधिक उत्तरदायी है।
इस प्रकार आज विज्ञान का दुरुपयोग किया जारहा है । अगर विज्ञान का सदुपयोग किया जाये तो वह धर्म
* इस व्याख्यान के पश्चात् विश्वव्यापी महायुद्ध का जो प्रचड ताण्डव हुआ है, उससे विज्ञान के कटुक फल खूब साफ मालूम होने लगे हैं । पूज्यश्री का यह व्याख्यान तो महायुद्ध के पहले का है ।