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१४८-सम्यक्त्वपराक्रम (१) आज्ञा से दासी ने ललिताग के पैरो में रस्सी बाँधकर उसे उल्टा लटका दिया । जब ललिताग को पाखाने में उलटा लटकाया गया होगा तो कौन जाने उसकी क्या दगा हुई होगो !
राजा, रानी के महल में आया और रानी के साथ कुछ खानपान करके लौट गया। रानी को या तो ललिताग की कायरता देखकर घृणा हुई या वह उसे भूल गई अथवा और कोई कारण हुआ, जिससे उसने पाखाने मे से ललिताग को नहीं निकाला । ललिताग को लटके-लटके वहुत समय व्यतीत हो गया।
पानी का निकास उसी पाखाने मे होकर था । वर्षा होने के कारण पाखाने मे जो पानी पहुँचा, उससे सूखा मल भी गीला हो गया और नीचे गिरने लगा । ललिताग उस मल से लिप्त हो गया । ऐसी मुसीबत में फंसा हुआ. ललिताग आखिर डोरी टूटने से नीचे गिर पडा और वेहोश हो गया ।
__ महतरानी, जो राजा और ललिताग के भी घर काम करती थी, पाखाना साफ करने आई । जैसे ही वह पाखाना साफ करने भीतर घुसी कि ललिताग नजर आया। देखते ही वह पहचान गई । उसने सोचा- हमारे सेठ का कुमार ललिताग और यहा पाखाने मे पड़ा है । वह उल्टे पाँव सेठ के घर दौडी । सेठ मे कहा- तुम जिसकी चिन्ता करते थे, वह ललिताग कुमार तो राजा के पाखाने में पडा है ! सेठ सोचने लगा- ललिताग वहाँ किस प्रकार पहुंचा होगा! खैर, जो हुआ सो हुआ, मगर अभी तो उसे शीघ्र ही घर