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दूसरा बोल-१४६
लाना उचित है। सेठ कुछ आदमियो को साथ ले वहाँ पहँचा
और ललिताग को घर उठा लाया उस समय ललिताग की स्थिति अत्यन्त नाजुक थी, पर यथोचित उपचार कराने से वह मरते-मरते बच गया । धीरे-धीरे स्वास्थ्य लाभ करके उसने अपनी पूर्व-स्थिति प्राप्त कर ली।
स्वस्थ होने के पश्चात् ललिताग' घोडागाडी में बैठकर घूमने निकला । फिर रानो की दृष्टि ललिताग पर जा पडी । उसे देखते ही वह सोचने लगी- मैंने बहुत बडी भूल की । यह पुरुष तो भोगने योग्य है । यह सोचकर रानी ने फिर अपनी दासी उसके पास भेजी और महल में आने के लिये कहलाया । मगर ललिताग, जो महान् दुःख एक वार भुगत चुका था, क्या दूसरी बार रानी के पास जाने को तैयार हो सकता था ? इस विषय मे तुम्हारी सलाह पूछी जाती तो तुम क्या सलाह देते ? नि.सन्देह प्रत्येक बुद्धिमान् पुरुष यही सलाह देगा कि जहा इतना भयकर कष्ट भोगना पडता है वहाँ हर्गिज नहीं जाना चाहिये ।
ललितागकुमार को यह सलाह देने के लिए आप तैयार है, मगर जरा अपने सबध मे भी तो विचार कर देखो ! ललिताग को जो काम न करने की सलाह दे रहे हो, वही काम आप स्वय तो नही करते है ? "आपने अनेको वार इस प्रकार के कष्ट भुगते हैं फिर भी आपकी दशा और दिशा नही बदली । क्या आप माता के पेट मे उलटे नही लटके ? क्या वहा मल-मूत्र नही है ? गर्भ मे आप अपनी माता के आहार में से रसवाहिनी नाडी द्वारा थोडा-सा रस लेते थे। श्री भगवतीसूत्र मे एक प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान ने फर्माया है कि गर्भ का बालक, माता के ग्रहण किये हए