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सूत्रपरिचय-५ की अपेक्षा तो रखता है पर उत्कृष्ट की अपेक्षा नही रखता । - इस प्रकार जघन्य मे स-उत्तर गुण रहता है और उत्कृष्ट
मे स-उत्तर गुण नही वरन् अनुत्तर गुण रहता है । मध्यम __ मे दो के अक को तरह स-उत्तर और अनुत्तर--दोनो गुण पाये जाते है।
यह हुई द्रव्य-उत्तर की बात । द्र य-उत्तर की अपेक्षा इस सूत्र का 'उत्तराध्ययन' नाम ठीक ही है, क्योकि 'उत्तराध्ययन' नाम अनुत्तर की अपेक्षा रखता है और इसका अनुत्तर सूत्र आचाराग है । इस सूत्र से पहले आचारागसूत्र पढ़ाया जाता है, अतएव यह उत्तराध्ययनसूत्र स-उत्तर है।
भाव-उत्तर की अपेक्षा उत्तराध्ययनसूत्र, पाँच भावों में से क्षायोपशमिक भाव मे है। क्षायोपशमिक भाव में जो सूत्र हैं, उनमे भी कम है। जैसे-आचारागसूत्र भी क्षायोपशमिक भाव में हैं और उत्तराध्ययन भी क्षायोपशमिक भाव मे है। किन्तु आचारागसूत्र पूर्ववर्ती है और उत्तराध्ययन उसका उत्तरवर्ती है । इसी कारण उसे उत्तराध्ययन कहते हैं । आचारागसूत्र को अगर क्षायोपशमिक भाव मे न गिना जाये तो दोष आएगा । अतएव यह तो मानना ही चाहिये कि दोनो सूत्र क्षायोपशमिक भाव मे हैं, तथापि आचारागसूत्र अनुत्तर है और उत्तराध्ययन स उत्तर है, क्योकि आचाराग सूत्र को पढने के पश्चात् ही उत्तराध्ययनसूत्र पढाया जाता । इस कथन की साक्षो में नियुक्तिकार की निम्नलिखित गाथा उपस्थित की जाती है--
कम उत्तरेण पगय आयारस्सेव उवरियाण तु । तम्हाउ उत्तरा खलु अज्झयणा होति णायव्वा ।