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पहला बोल-१३३
लगी-मैं ऐसे बड़े घर की लडकी हु और सास मुझ पर इस तरह हुक्म चलाती हैं- मुझसे सिला और लोढा उठा लाने को कहती हैं । इस प्रकार विचार कर वह बोलीसिला और लोढा उठा लाने का काम तो मायके में भी मैंने कभी नही किया है । सासु ने शान्त स्वर मे कहा-ठीक है तुम बैठो ! मैं उठाये लाती है । इतना कह कर सासु सिला और लोढा उठा लाई और पीसने की चीज पीस ली । सासु ने तो ऐसा किया मगर पुत्र को अपनी पत्नी का यह असद्भावपूर्ण व्यवहार दिल मे बुरी तरह खटका । वह मन हा मन विचारने लगा-पत्नी कहती है कि शिला और लोढा उठाने का काम तो मैंने मायके मे भी नहीं किया, तो यहाँ क्यो करूं । इसके कहने का आशय यह है कि उसके बाप का घर वडा है और यह घर छोटा है । इसने अपने बाप के बडे घर के अभिमान मे आकर ही मेरी माता को असदभावपूर्ण उत्तर दिया है । उसका यह अभिमान किसी भी उपाय से दूर करना चाहिये ।। - लडका समझदार था । उसने सोचा- कटुक वचन कहने से अथवा मारपीट करने से उसका स्वभाव नही सुधरेगा । किसी अन्य युक्ति से ही उसका सुधार करना उचित है । एक दिन उसने बाजार मे एक हार बिकता देखा। इसी से पत्नी का सुधार करना योग्य है, ऐसा विचार कर उसने हार खरीद लिया और सुनार को बुलाकर कहाइस हार के बीच में एक बडा-सा कड़ा डाल दे और उसमें मोने की अढाईसेरी डालकर उसे सोने से ऐसा मढ दे कि वह एक दम सोने का ही मालूम होने लगे । सुनार ने उसके कथनानुसार हार तैयार कर दिया। लड़का हार लेकर घर