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१२६-सम्यक्त्वपराक्रम (१)
कामदेव श्रावक के चरित पर दष्टि दीजिये । कामदेव पर पिशाचरूपधारी देव कुपित हुआ था। उसने कामदेव से अनेक कटक वचन कहे थे । पिगाच ने कहा था-'अप्पत्यियपत्थिया ! तू अपना धर्म छोड दे, अन्यथा तुझे मार डालूगा।' मगर कामदेव विचार करता था- 'यह पिशाच मुझे न इच्छा वरने योग्य वस्तु की इच्छा करने वाला कहता है, मगर वह अपनी समझ के अनुसार क्या गलत कहता है ? यह पिशाच है, अतएव इसे धर्म अवाछनीय-न इच्छा करने योग्य प्रतीत होता है, और इसी कारण यह मुझमे ऐसा कहता है। मगर मैं धर्म को वाछनीय और आदरणीय समझता हू तो फिर मुझे क्यो बुरा लगे ? धर्म उसके लिए इच्छनीय है या नहीं, इस बात का पता तो इसी मे चल जाता है कि इसमे धर्म का अभाव है। इसी कारण तो इसे देव होकर भी पिशाच का रूप धारण करना पड़ा है। इसमे धर्म होता तो इसे ऐसा क्यो करना पडना ? देवो के योग्य सुन्दर आभूपण त्याग कर स्वेच्छापूर्ण साँप का उत्तरासन क्यो करना पडता ? इस देव ने पिशाच का वैक्रिय रूप धारण किया है। यह सोचता होगा कि इस रूप से मै डर जाऊँगा और धर्म से विचलित हो जाऊँगा । इसी कारण दिव्य रत्नो की मनोहर माला धारण करने वाला आज केकडो और चूहो की माला पहन कर आया है। धर्म न होने के कारण वेचारे को कितना वीभत्स और भयानक रूप धारण करना पडा है । धर्म के अभाव से ही इसकी यह दयनीय दशा वनी है।'
___ कामदेव श्रावक अठारह करोड सुवर्ण मोहरो का और अस्सी करोड़ गायो का स्वामी था, फिर भी उसमे इतनी