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पहला बोल-१२५
ऐसा पापी हं ! ऐसी स्थिति मे, हे प्रभो । मैं तेरी प्रार्थना के योग्य कैसे बन सकता हूँ?
जो व्यक्ति इस प्रकार गुणग्राही नही वरन् अवगुणग्राही है वह व्यक्ति अभी तक सम्यग्दर्शन से दूर है, ऐसा समझना चाहिए । सम्यग्दृष्टि तो यही कहेगा कि मुझे पराये अवगुणो से क्या मतलब ? मै तो उसी को उपकारी मानगा जो मेरे अवगुण मुझे बतलाएगा। अगर तुम्हारे पर मे काटा लगा हो और कोई दूसरा आदमी काँटा बाहर निकाल दे तो तुम्हे अच्छा लगेगा या बुरा ? कदाचित् तुम कहोगे कि हमारे पैर मे काँटा लगा हो और कोई निकाल दे तो ठोक है, मगर कांटा तो न लगा हो फिर भी कोई कहे कि काँटा लगा है तो क्या हमे बुरा नही लगना चाहिये ? इसका उत्तर यह है कि जब तुम जानते हो कि तुम्हे काटा नहीं लगा है तो फिर दूसरे के कथन पर ध्यान ही क्यो देते हो ? ऐसी स्थिति मे तो दूसरो की बात पर कान ही नहीं देना चाहिए । तुमने अपने सिर पर सफेद टोपी पहनी हो और दूसरा कोई तुम्हे काली टोपी वाला कहे तो तुम्हे खराब लगने का क्या कारण है ? ऐसे अवसर पर तुम यही सोचोगे कि मेरे सिर पर सफेद टोपी है, अत. वह किसी और को काली टोपी वाला कहता होगा! इससे मुझे क्या सरोकार है । इस प्रकार विचार करना समदृष्टि का लक्षण है । आत्मा जब इस प्रकार समदृष्टि के मार्ग पर प्रयाण करेगा तभी अपना कल्याण साध सकेगा । कुटिलता और क्रूरता के व्यवहार से आत्मा का कल्याण साध्य नही है।"
अनुत्तर धर्म पर श्रद्धा रखने वाला किस प्रकार धर्म पर दृढ रहता है, यह बात समझने के लिये शास्त्र मे वर्णित