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सूत्र परिचय - ३
रांगसूत्र के बाद पढाया जाता है, अत इसे उत्तराध्ययनसूत्र कहते हैं । इस प्रकार मूल आचारांग रहा और उत्तर -- तदनन्तर का उत्तराध्ययन ठहरा । इस प्रकार आचारागसूत्र के बाद पढाया जाने के कारण इस सूत्र का नाम उत्तराध्ययन पड़ा है, ऐसा प्रतीत है । परन्तु उत्तराध्ययनसूत्र से पहले श्री आचारागसूत्र पढाने का क्रम शय्यभव आचार्य से पहले का है ।
जब शय्यभव आचार्य ने दशवैका लिकसूत्र ग्रथित किया और वह थोडे मे हो विशेष ज्ञान कराने वाला सूत्र मान लिया गया, तब उत्तराध्ययनसूत्र से पहले आचारागसूत्र के पठन-पाठन के बदले दशवैकालिकसूत्र के पठन-पाठन का क्रम चालू हो गया । चार मूल सूत्रो मे दशवैकालिक भी एक मूल सूत्र गिना गया है और उसके पश्चात् इस सूत्र का अध्ययन-अध्यापन होता है, इस कारण भी इसे उत्तराध्ययन कहते हैं । मतलब यह है कि दशवैकालिकसूत्र मूल है और वह पहले पढ़ा- पढाया जाता है और उसके उत्तर - अनन्तर इस सूत्र का अध्ययन किया जाता है, अतएव इसे 'उत्तराध्ययन' कहते हैं ।
'उत्तराध्ययन' शब्द पर थोडा विचार और करे | 'उत्तर' शब्द का अर्थ 'प्रधान' भी होता है । मगर यहाँ 'प्रधान' अर्थ को अपेक्षा 'क्रमप्रधान' अर्थ करना अधिक सगत प्रतीत होता है । अगर 'उत्तर' शब्द का 'प्रधान' अर्थ ही किया जाये तो प्रश्न उपस्थित होता है कि यह सूत्र किस प्रकार प्रधान है और किससे प्रधान है ? अगर यह सूत्र किसी अन्य सूत्र की अपेक्षा प्रधान है तो क्या कोई सूत्र