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________________ विपय पृष्ठ १०२ १०४ १०४ १०५ १०८ १०८ १०६ १११ ११४ ११४ ११५ १८-सवमें बड़ेमें बड़ा पाप; सबमें बड़ा पुण्य और सबमें पहले में पहला धर्म १६-प्रभू, तेरी प्रभुता। * सम्यक्त्व सिद्धि सुखका दाता है २०-परम सत्य का हकार और उसका फल २१-निःशंकता * भवपार होनेका उपाय २२-विना धर्मात्मा धर्म नहिं रहता (न धर्मो धार्मिकैविना ) २३-सत्की प्राप्तिके लिये अर्पणता २४-सम्यग्दृष्टिका अन्तर परिणमन --. * "सम्यक्त्व प्रभु है ) २५-जिज्ञासुको धर्म कैसे करना चाहिये ? २६-एकवार भी जो मिथ्यात्वका त्याग करे तो जरूर मोक्ष पावे * अमृत पान करो २७-अपूर्व-पुरुषार्थ * सम्यक्त्वकी आराधना २८ श्रद्धा-ज्ञान और चारित्रकी भिन्न भिन्न अपेक्षायें * कौन प्रशंसनीय है २९-सम्यग्दर्शन-धर्म ३०-हे जीवो मिथ्यात्वके महापापको छोड़ो ३१-दर्शनाचार और चारित्राचार ३२-कौन सम्यग्दृष्टि हैं ? ३३-सम्यग्दृष्टिका वर्णन ३४-मिथ्याष्टिका वर्णन * परम रत्न १३८ १३६ १३६ १४० १४२ १४३ १४६ १५३ १६०
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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