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________________ विषय ३५ - सम्यग्दर्शनकी रीति * सम्यक्त्वकी दुर्लभता * आत्मज्ञान से शाश्वत सुख ३६ - स्वभावानुभव करनेकी रीति ३७- पुनीत सम्यग्दर्शन ३८-धर्मात्माकी स्वरूप जागृति ३६ - हे भव्य । इतना तो अवश्य करना ४०-१ पाप ४०-२ ये महापाप कैसे टले ? ४१ - सम्यग्दर्शन बिना सब कुछ किया लेकिन उससे क्या ! ४२ - द्रव्यदृष्टि और पर्यायदृष्टि तथा उसका प्रयोजन ४३-१ धर्मकी पहली भूमिका भाग १ ( मिथ्यात्वका अर्थ ) * बन्ध-मोक्षका कारण पृष्ठ १६१ १७७ १७७ १७८ १८१ १८४ १८५ १८८ १८६ १६० १६७ २०० २०८ ४३-२ धर्मकी पहली भूमिका भाग २ ( मिध्यात्व ) २०६ * सम्यग्दर्शनकी महानता; सम्यग्दर्शनसे कर्म क्षयः सर्व धर्मका मूल २२१ ४३-३ धर्मकी पहली भूमिका भाग ३ २२२ * सर्व दुःखोंकी परम औषधि ४४ -१ सम्यग्दर्शनका स्वरूप और वह कैसे प्रगटे ? ४४-२ धर्म साधन * सम्यक्त्वी सर्वत्र सुखी ४५-निश्चयश्रद्धा- ज्ञान कैसे प्रगट हो ? ४६ - सम्यक्त्वकी महिमा-श्रावक क्या करे ? २३६ २४० २४७ २४८ २४६ २५६
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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