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* सम्यग्दर्शन उसमें किंचित्मात्र भी फर्क नहीं होगा ऐसा निर्णय करनेवाले जीवने मात्र ज्ञान स्वभावका निर्णय किया कि वह अभिप्रायसे संपूर्ण ज्ञाता होगया उसमें केवलज्ञान सन्मुखका अनंत पुरुषार्थ आगया।
__ केवलज्ञानी अरिहंत प्रभुका जैसा भाव है वैसा अपने ज्ञानमें जो जीव जानता है वह वास्तवमें अपने आत्माको जानता है, क्योंकि अरिहंतके
और इस आत्माके स्वभावमें निश्चयतः कोई अंतर नहीं है। अरिहन्तके स्वभावको जाननेवाला जीव अपने वैसे स्वभावकी रुचिसे यह यथार्थतया निश्चय करता है कि वह स्वयं भी अरिहंतके समान ही है। अरिहंतदेवका लक्ष्य करने में जो शुभ राग है उसकी यह बात नहीं है। किन्तु जिस ज्ञानने अरिहंत का यथार्थ निर्णय किया है उस ज्ञानकी बात है। निर्णय करनेवाला ज्ञान अपने स्वभावका भी निर्णय करता है और उसका मोह क्षयको अवश्य प्राप्त होता है।
प्रवचनसारके दूसरे अध्याय की ६५ वी गाथामें कहा है कि-"जो अरिहंतको" सिद्धको तथा साधुको जानता है और जिसे जीवोंपर अनुकम्पा है उनके शुभरागरूप परिणाम है" इस गाथामें अरिहतके जाननेवालेके शुभ राग कहा है ? यहां मात्र विकल्पसे जाननेकी अपेक्षासे बात है, यह जो वात है सो शुभ विकल्प की बात है जब कि यहाँ तो ज्ञान स्वभावके निश्चय युक्त की बात है। अरिहंतके स्वरूपको विकल्पके द्वारा जाने किन्तु मात्र ज्ञान स्वभावका निश्चय न हो तो वह प्रयोजनभूत नहीं है और ज्ञान स्वभावके निश्चयसे युक्त अरिहंत की ओरका विकल्प भीराग है, वह राग कीशक्ति नहीं किन्तु जिसने निश्चय किया है उस ज्ञान की ही अनन्त शक्ति है और वहमान ही मोह क्षय करता है उस निर्णय करने वालेने केवलजानकी परिपूर्ण शक्तिको अपनी पर्यायकी स्व पर प्रकाशक शक्ति में समाविष्ट कर लिया है। मेरे ज्ञानकी पर्याय इतनी शक्ति संपन्न है कि निमित्तकी महायता यिना
और परके लक्ष्य विना तथा विकल्पके विना फेवल्यानी अरिहनके द्रव्य, गुण, पर्यायको अपनेमें समा लेती है-निर्णयमें ले लेती है।